अमरावती, 10 मई (आईएएनएस)। टॉलीवुड के दो प्रमुख कलाकार आंध्र प्रदेश में 13 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में हैं। जन सेना पार्टी के प्रमुख पवन कल्याण एक बार फिर अपनी पहली चुनावी जीत के लिए प्रयासरत हैं, तो वहीं नंदमुरी बालकृष्ण का लक्ष्य जीत का हैट्रिक बनाना है।
पवन कल्याण, 2019 में दो सीटों पर चुनाव लड़े थे और दोनों हार गए थे। इस बार तटीय आंध्र में काकीनाडा जिले के पीथापुरम से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री एन. टी. रामाराव (एनटीआर) के बेटे बालकृष्ण, रायलसीमा क्षेत्र में श्री सत्य साई जिले के हिंदूपुर से तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं।
1983 के बाद से आंध्र प्रदेश में ग्लैमर हर चुनाव का हिस्सा रहा है। उस वर्ष प्रसिद्ध अभिनेता एनटीआर ने राजनीति में कदम रखा था। उसके बाद राज्य का राजनीतिक परिदृश्य बदल गया।
लोगों के बीच बलय्या नाम से प्रसिद्ध बालकृष्ण को इस बार हिंदूपुर से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है। इस क्षेत्र से उनके पिता एनटीआर भी चुनाव लड़ा करते थे।
2014 और 2019 की तरह इस बार भी उनका सीधा मुकाबला वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के उम्मीदवार से है। इस बार सत्तारूढ़ वाईएसआरसीपी ने महिला उम्मीदवार तिप्पेगौड़ा नारायण दीपिका को मैदान में उतारा है।
दीपिका ने 14 साल की उम्र में 1974 की तेलुगु फिल्म 'ततम्मा काला' से अभिनय की दुनिया में कदम रखा। 63 वर्षीय दीपिका ने 100 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया है।
टीडीपी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू के साले बलय्या ने 2014 में हिंदूपुर से जीत से साथ राजनीति में कदम रखा। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी वाईएसआरसीपी के बी. नवीन निश्चल को 16,196 वोटों से हराया।
2019 में, राज्य भर में वाईएसआरसीपी की लहर के बावजूद, बलय्या ने सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी शेख मोहम्मद इकबाल को 18,028 वोटों से हराकर सीट बरकरार रखी।
इकबाल को बाद में वाईएसआरसीपी ने विधान परिषद का सदस्य बनाया था। वह हाल ही में टीडीपी में शामिल हुए।
इस बार कांग्रेस पार्टी ने मोहम्मद हुसैन इनायतुल्लाह को मैदान में उतारा है। हालांकि मुकाबला बलय्या और दीपिका के बीच होने की संभावना है।
पिछड़े वर्ग की दीपिका वाईएसआरसीपी नेता वेणुगोपाल की पत्नी हैं। वाईएसआरसीपी के रायलसीमा समन्वयक और राज्य मंत्री पेद्दीरेड्डी रामचंद्र रेड्डी चुनाव अभियान में उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं।
पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम मतदाताओं को यहां निर्णायक माना जाता है। इसलिए वाईएसआरसीपी दोनों वर्गों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है।
टीडीपी का जन सेना पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन है। इसलिए टीडीपी खेमे को भरोसा है कि बलय्या आरामदायक अंतर से सीट बरकरार रखेंगे।
कम्मा बालकृष्ण भी पिछड़े वर्गों और मुसलमानों के समर्थन पर भरोसा कर रहे हैं। उनकी पत्नी और बेटियां भी उनके लिए प्रचार कर रही हैं।
वाईएसआरसीपी का हिंदूपुर सीट पर विशेष ध्यान है। दीपिका को उम्मीद है कि वाईएसआरसीपी सरकार की कल्याणकारी योजनाएं पार्टी को हिंदूपुर में पहली जीत दिलाएंगी। यह सीट 1983 से टीडीपी का किला बना हुआ है। 1983 में पी. रंगनायुकुलु के यहां से चुने जाने के बाद से टीडीपी यहां से कभी चुनाव नहीं हारी है।
एनटीआर का हिंदूपुर से खास रिश्ता था। उन्होंने तीन बार सीट जीती। वह दो बार मुख्यमंत्री बने और एक बार विपक्ष के नेता की भूमिका निभाई।
1985 में व तीन सीटों (तटीय आंध्र, रायलसीमा और तेलंगाना में एक) से चुनाव लड़ा और तीनों से चुने गए। बाद में दो अन्य सीट को छोड़ दिया और हिंदूपुर का प्रतिनिधित्व किया।
1989 में, एनटीआर ने हिंदूपुर से फिर से चुनाव लड़ा और सीट बरकरार रखी। उन्होंने 1994 में हिंदूपुर से लगातार तीसरी बार जीत हासिल कर सत्ता में वापसी की।
1996 में एनटीआर की मृत्यु के कुछ महीने बाद, उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू ने मुख्यमंत्री बनने के लिए विद्रोह का नेतृत्व किया। इसके परिणामस्वरूप उपचुनाव हुआ और एनटीआर के बड़े बेटे नंदमुरी हरिकृष्ण को टीडीपी उम्मीदवार के रूप में चुना गया। हालांकि एनटीआर के परिवार के सदस्यों ने 1999, 2004 और 2009 का चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन पार्टी ने सीट बरकरार रखी।
एनटीआर और उनकी पत्नी बासवतारकम के सात बेटे और चार बेटियां थीं। लेकिन उनमें से कोई भी उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी नहीं बन सका। एनटीआर के दामाद चंद्रबाबू नायडू ने टीडीपी संस्थापक की राजनीतिक विरासत को सफलतापूर्वक संभाला।
एनटीआर ने अपने चौथे बेटे बालकृष्ण को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया था, लेकिन उन्होंने खुद को पार्टी के लिए प्रचार तक ही सीमित रखा। अपने अधिकांश भाई-बहनों की तरह, बालकृष्ण ने पार्टी मामलों और प्रशासन में एनटीआर की दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती के बढ़ते हस्तक्षेप का हवाला देते हुए 1995 में एनटीआर के खिलाफ तख्तापलट में नायडू का समर्थन किया था।
टीडीपी के गठन के बाद से बालकृष्ण ने हमेशा हर चुनाव में पार्टी के लिए प्रचार किया, लेकिन चुनावी लड़ाई में नहीं उतरे। 2014 में उन्होंने हिंदूपुर से पहली बार चुनावी राजनीति में कदम रखा।
बालकृष्ण चंद्रबाबू नायडू के इकलौते बेटे नारा लोकेश के ससुर भी हैं।
--आईएएनएस
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