iGrain India - इंदौर । हालांकि केन्द्र सरकार कई सप्ताह पूर्व ही खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर चुकी है जिसका प्रमुख उद्देश्य किसानों को खरीफ कालीन तिलहन फसलों और खासकर सोयाबीन का बेहतर मूल्य दिलाना था
लेकिन उपलब्ध संकेतों से स्पष्ट पता चलता है कि सरकार का यह निर्णय अब तक अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाया है क्योंकि तमाम मंडियों में सोयाबीन का दाम सरकारी समर्थन मूल्य से काफी नीचे चल रहा है।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार केन्द्र सरकार ने 2024-25 के वर्तमान मार्केटिंग सीजन के लिए सोयाबीन का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2023-24 के 4600 रुपए प्रति क्विंटल से 292 रुपए या 6.3 प्रतिशत बढ़ाकर 4892 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है जबकि इसका औसत थोक मंडी भाव 4500-4700 रुपए प्रति क्विंटल के बीच चल रहा है।
यद्यपि सरकार ने किसानों से एमएसपी पर सोयाबीन की विशाल मात्रा की खरीद का ऐलान किया था और नेफेड तथा एनसीसीएफ जैसी एजेंसियों ने इसकी खरीदारी भी आरंभ कर दी है मगर इसकी गति बहुत धीमी है।
प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पिछले सप्ताह के अंत तक सरकारी एजेंसियों द्वारा मूल्य समर्थन योजना के तहत मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात एवं तेलंगाना जैसे राज्यों में कुल मिलाकर केवल 26,442 टन सोयाबीन की खरीद की गई।
अधिकारियों के अनुसार सोयाबीन की खरीद धीरे-धीरे जोर पकड़ती जा रही है। दरअसल मंडियों में या सरकारी क्रय केन्द्रों पर सोयाबीन का जो माल पहुंच रहा है उसमें नमी का अंश स्वीकृत सीमा से ऊंचा देखा जा रहा है।
फसल की कटाई-तैयारी से पूर्व कई इलाकों में भारी वर्षा हो गई थी। आमतौर पर अक्टूबर के अंत से मंडियों में सोयाबीन की जोरदार आपूर्ति होने लगती है जो दिसम्बर के अंत तक बरकरार रहती है।
केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने सितम्बर में राष्ट्रीय स्तर पर 2024-25 के मार्केटिंग सीजन में कुल मिलाकर 32.20 लाख टन सोयाबीन की खरीद को मंजूरी दी थी जिसके तहत मध्य प्रदेश में 13.60 लाख टन, महाराष्ट्र में 13 लाख टन, राजस्थान में 2.90 लाख टन,
कर्नाटक में 1.00 लाख टन, गुजरात में 90 हजार टन तथा तेलंगाना में 50 हजार टन की खरीद का प्रस्ताव शामिल था। पिछले खरीफ सीजन में किसानों से करीब 70 हजार टन सोयाबीन की सरकारी खरीद हुई थी।