iGrain India - तुवर का बाजार: उत्पादन में वृद्धि, लेकिन पाइपलाइन खाली
इस सीजन में तुवर की उत्पादन स्थिति सकारात्मक रही है, हालांकि बाजार में कुछ चुनौतियां भी हैं। उत्पादन, खपत, आयात, और विदेशी बाजारों के असर से यह समीकरण बदल रहा है। आइए इस पर विस्तार से नजर डालते हैं:
1. उत्पादन और खपत
- उत्पादन: इस वर्ष तुवर का उत्पादन बढ़ने का अनुमान है। तुवर की बिजाई क्षेत्र में वृद्धि, अच्छी बारिश और मौसम की अनुकूल परिस्थितियों से उत्पादकता में सुधार हुआ है। कर्नाटक के गुलबर्गी क्षेत्र में थोड़ी क्षति हुई, लेकिन इस क्षेत्र में बिजाई क्षेत्र भी बढ़ा है। *आई-ग्रेन इंडिया* के सर्वे के अनुसार, इस नुकसान का असर केवल 10% तक हो सकता है, और कुल उत्पादन पर इसका न्यूनतम प्रभाव पड़ेगा। महाराष्ट्र में फसल बेहद अच्छी।
- इस वर्ष उत्पादन 35 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 28 लाख टन था।
-खपत: चालू सीजन में तुवर की खपत 43 लाख टन होने की संभावना है, जो पिछले सीजन की 42 लाख टन खपत से अधिक है। इसके बाद सीजन के अंत में लगभग 4 लाख टन स्टॉक बचने की उम्मीद है।
-आयात: इस वर्ष तुवर के आयात में वृद्धि हुई है, और 12 लाख टन आयात का अनुमान है। पिछले साल आयात का आंकड़ा 8 लाख टन था।
- बकाया स्टॉक: पिछले साल पुराने बकाया स्टॉक में कमी आई थी, जिससे उपलब्धता 42.4 लाख टन थी। इस वर्ष बकाया स्टॉक के अलावा आयात और उत्पादन से 47.2 लाख टन की उपलब्धता की उम्मीद है।
2. विदेशों में उत्पादन और निर्यात
-म्यांमार और अफ्रीकी देशों से उत्पादन: म्यांमार में पिछले सीजन में तुवर का उत्पादन रिकॉर्ड 3.5 लाख टन था, और अफ्रीकी देशों से 8-9 लाख टन तुवर का उत्पादन हुआ। इस वर्ष म्यांमार में तुवर का उत्पादन घटकर 4 लाख टन तक रहने का अनुमान है।
-निर्यात: म्यांमार और अफ्रीकी देशों से निर्यात में वृद्धि देखी गई है। म्यांमार से अप्रैल से नवंबर तक 3 लाख टन से अधिक तुवर निर्यात हुआ है, जिससे औसतन प्रति महीने 27,400 टन निर्यात हुआ।
-पाइपलाइन खाली: हालांकि विदेशी उत्पादन में कमी के कारण पाइपलाइन में तुवर की आपूर्ति कम हो रही है, जिससे भविष्य में आयात पर निर्भरता बढ़ सकती है।
3. आयात
- आयात पर वृद्धि: इस वर्ष अप्रैल से अक्टूबर तक तुवर का आयात लगभग 8 लाख टन होने की उम्मीद है, जो पिछले वर्ष के इसी अवधि के आयात 4.4 लाख टन से काफी अधिक है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान कुल आयात 7.7 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 8.95 लाख टन था।
-आयात में वृद्धि: कम घरेलू उत्पादन के कारण आयात में वृद्धि हुई है, जो आयातकों और व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है।
4. घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कीमतें
-घरेलू MSP और बाजार कीमतें: इस वर्ष तुवर की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ₹7,550 प्रति क्विंटल घोषित की गई है, लेकिन गुलबर्गा मंडी में तुवर ₹10,158 प्रति क्विंटल की कीमत पर बेची गई, जो MSP से ₹2,608 अधिक है।
-मूल्य दबाव: हालांकि, पिछले 15 दिनों में बढ़ते आयात के कारण कीमतों में दबाव देखा गया है। 2 दिसंबर को गुलबर्गा में तुवर का भाव ₹11,000 प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था, लेकिन अब 7 दिसंबर को यह ₹9,250 प्रति क्विंटल तक घट गया है।
-अंतर्राष्ट्रीय कीमतें: म्यांमार तुवर की कीमत 2 दिसंबर को $1,010 प्रति टन थी, जो अब घटकर $940 प्रति टन हो गई है। हालांकि, आज 7 दिसंबर को इसमें $30 की वृद्धि हो कर $970 तक पहुंच गया है।
5.बाजार स्थिति
-निर्यात और स्टॉक: म्यांमार और अफ्रीकी देशों से बढ़े निर्यात के कारण इन देशों में तुवर का स्टॉक कम होने लगा है। म्यांमार में तुवर की बिजाई पूरी हो चुकी है, और इस वर्ष उत्पादन 4 लाख टन तक पहुंच सकता है, जिसका आयात फरवरी 2025 से शुरू होगा।
-घरेलू फसल: कर्नाटक में तुवर की कटाई शुरू हो चुकी है, और 15 दिसंबर से महाराष्ट्र में भी कटाई शुरू हो जाएगी। देश में वर्तमान में पाइपलाइन सप्लाई में कमी आ चुकी है, और मिलर्स अब नई तुवर का इंतजार कर रहे हैं।
- **मिलर्स की स्थिति**: मिलर्स सही माल (नमी के साथ) आने के बाद स्टॉक बनाने के लिए बड़ी मात्रा में खरीदारी कर सकते हैं। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और गुजरात जैसे राज्य समय-समय पर तुवर खरीद के टेंडर जारी करते रहेंगे, जिससे घरेलू तुवर की मांग बनी रहेगी।
6. सरकारी निर्णय और मटर आयात
-मटर आयात का प्रभाव: मटर के बढ़ते आयात ने तुवर की खपत को प्रभावित किया है। यदि सरकार मटर आयात को लेकर कोई बड़ा निर्णय लेती है, तो इसका असर तुवर की मांग पर पड़ेगा।
-भविष्य की उम्मीद: कम स्टॉक के कारण अगर मांग का समर्थन मिलता है परन्तु आवक बढ़ते समय क़ीमतों पर दवाब भी बनता रहेगा।
निष्कर्ष
तुवर का बाजार इस समय अस्थिर स्थिति में है, जिसमें बढ़ी हुई उत्पादन क्षमता और आयात के बावजूद पाइपलाइन में सप्लाई की कमी है। मटर आयात और सरकार की नीतियों का असर भी इस बाजार पर पड़ेगा।शार्ट टर्म यानि 3 महीनों में बढ़ते उत्पादन, आवक और आयात से की देखते हुई कीमतों में बन सकता हैं दवाब। घटे भावों पर खरीद की दी जाती है सलाह।
घरेलू खपत, बढ़ती मांग, और कम स्टॉक के कारण लॉन्ग टर्म में तुवर की कीमतों में स्थिरता या वृद्धि की संभावना बनी रह सकती है।