iGrain India - इंदौर । वर्ष 2024 का समय सोयाबीन उत्पादकों के लिए कीमतों की दृष्टि से निराशाजनक माना जा सकता है क्योंकि सरकारी समर्थन मूल्य की तुलना में इसका मंडी भाव काफी नीचे रहा और सरकारी एजेंसियों द्वारा बाजार में काफी देरी से हस्तक्षेप किया गया।
हालांकि केन्द्र सरकार ने सितम्बर 2024 में ही क्रूड एवं रिफाइंड श्रेणी के खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में 20 प्रतिशत बिंदु का इजाफा कर दिया था और अक्टूबर-नवम्बर के त्यौहारी महीनों में खाद्य तेलों के दाम में बढ़ोत्तरी भी हुई थी लेकिन सोयाबीन का भाव ज्यादा नहीं सुधर सका और समर्थन मूल्य से नीचे ही रहा।
इंदौर स्थित संस्था- सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के कार्यकारी निदेशक का कहना है कि यद्यपि केन्द्र सरकार ने 2024-25 के मार्केटिंग सीजन हेतु सोयाबीन का न्यूतनम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2023-24 सीजन के 4600 रुपए प्रति क्विंटल से करीब 300 रुपए बढ़ाकर 4892 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित कर रखा है लेकिन इसका मंडी भाव काफी नीचे चल रहा है।
नैफेड तथा एनसीसीएफ जैसी सरकारी एजेंसियों द्वारा अभी तक किसानों से 15-16 लाख टन सोयाबीन की रिकॉर्ड खरीद की जा चुकी है लेकिन फिर भी मंडी भाव पर इसका कोई सकारात्मक असर नहीं देखा जा रहा है।
सोपा के अनुसार सोयामील का निर्यात बढ़ाना आवश्यक है। इससे सोयाबीन के दाम में कुछ सुधार आ सकता है। सरकार को इसमें सहयोग-समर्थन एवं प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।
सोयाबीन की मांग एवं आपूर्ति में अंतर की वजह से कीमतों पर दबाव बना हुआ है। सरकार द्वारा जिस सोयाबीन की खरीद की गई है उसे पुनः बाजार में ही उतारा जाएगा लेकिन जब तक क्रशिंग-प्रोसेसिंग इकाइयों को बेहतर आमदनी की उम्मीद नहीं रहेगी तब तक ऊंचे दाम पर सोयाबीन की खरीद होने में संदेह है।
सोपा को उम्मीद है कि आगामी आम बजट में सोयाबीन उद्योग, व्यापार एवं उत्पादन क्षेत्र के लिए कुछ अच्छी घोषणा हो सकती है।
खाद्य तेलों के अत्यन्त विशाल आयात को नियंत्रित करना और खासकर रिफाइंड खाद्य तेलों के आयात पर अंकुश लगाना आवश्यक है।