iGrain India - हालांकि आधिकारिक तौर पर भारत दुनिया में दाल-दलहनों का सबसे प्रमुख उत्पादक देश बना हुआ है लेकिन विशाल घरेलू खपत को पूरा करने के लिए इसे विदेशों से भारी मात्रा में उसका आयात करने के लिए विवश होना पड़ता है। दलहनों के उपयोग एवं आयात में भी भारत सबसे आगे है।
दलहनों के उपयोग एवं आयात में भी भारत सबसे आगे है। दलहनों के आयात पर विशाल धन राशि खर्च हो रही है जिससे राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था पर दबाव पड़ता है। केन्द्र सरकार का इससे चिंतित होना स्वाभाविक ही है।
दलहनों की तेजी से बढ़ती घरेलू मांग एवं खपत को पूरा करने के लिए उत्पादन बढ़ाना आवश्यक है। हाल के वर्षों में दलहनों के उत्पादन में भारी उतार-चढ़ाव आने से मांग एवं आपूर्ति का समीकरण असंतुलित हो गया और इसलिए आयात पर निर्भरता बढ़ गई।
पिछले साल केन्द्रीय सहकारित मंत्री ने कहा था कि भारत वर्ष 2027 तक दलहनों के उत्पादन में पूरी तरह आत्मनिर्भर हो जाएगा और वर्ष 2028 से इसके आयात पर पूर्ण विराम लग जाएगा।
लेकिन विडम्बना यह है कि वर्ष 2024 में दलहनों का आयात उछलकर सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया। प्राप्त सूचना के अनुसार पिछले साल देश में लगभग 66.3 लाख टन दलहनों का रिकॉर्ड आयात हुआ। इस विशाल आयात को घटाकर शून्य तक लाना कोई आसान काम नहीं है।
सरकार स्वयं इसका आयात जारी रखने के पक्ष में है इसलिए उसने तुवर के शुल्क मुक्त आयात की समय सीमा को एक और साल के लिए बढ़ा दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि 31 मार्च 2026 तक तुवर का शुल्क मुक्त आयात जारी रहेगा।
वैसे उड़द, मसूर, देसी चना तथा पीली मटर के बारे में अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि उड़द के आयात की अवधि बढ़ाई जा सकती है। अन्य दलहनों पर संशय बरकरार है।
केन्द्रीय आम बजट में सरकार ने 1000 करोड़ रुपए के आवंटन के साथ दलहन मिशन शुरू करने की घोषणा की है जो एक अच्छी पहल है।
यद्यपि भारत में दलहन फसलों का बिजाई क्षेत्र सबसे ज्यादा रहता है मगर औसत उपज दर अन्य उत्पादक देशों की तुलना में काफी नीचे रहने के कारण अपेक्षित उत्पादन प्राप्त नहीं हो पाता है।
इसकी तरफ विशेष ध्यान देना होगा। दलहनों की ऐसी नई किस्मों के बीज का विकास होना आवश्यक है जिसकी न केवल उत्पादकता दर ऊंची हो बल्कि जिसमें प्रतिकूल मौसम से अपना बचाव करने की क्षमता भी मौजूद हो।
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा गुजरात जैसे शीर्ष दलहन उत्पादक राज्यों में उपज दर बढ़ाने पर विशेष जोर दिए जाने की आवश्यकता है। छह वर्षीय दलहन मिशन से काफी उम्मीदें हैं लेकिन असली परिणाम इसकी सफलता पर निर्भर करेगा।