ट्रम्प द्वारा 50% टैरिफ की पुष्टि के बाद सोने की कीमतों में तेजी, तांबे में तेजी जारी
iGrain India - नई दिल्ली। अमरीकी प्रशासन ने भले ही अपनी टैरिफ दुनिया में हंगामा खड़ा कर दिया है लेकिन साथ ही साथ उसने वैश्विक बाजार और व्यापार के बदलते स्वरूप के साथ अपनी नीति रणनीति में आवश्यक परिवर्तन करने के प्रति सभी देशों को सचेत भी कर दिया है।
पांच दशक पूर्व भारत कृषि उत्पादों का एक महत्वपूर्ण आयातक देश बना हुआ था मगर अब परिदृश्य काफी हद तक बदल गया है।
आज भारत चावल, चीनी, मसाले, रूई तथा फलों-सब्जियों का बड़े पैमाने पर निर्यात करने की स्थिति में आ गया है। इसके अलावा कई अन्य क्षेत्रों (सेक्टर्स) के उत्पादों एवं सामानों का भी निर्यात तेजी से बढ़ रहा है।
अमरीका ने नई टैरिफ नीति के क्रियान्वयन को फिलहाल 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया है और इस बीच वह भारत सहित विभिन्न देशों से अपने पक्ष में मोल भाव का भरपूर प्रयास करेगा।
तीन महीने बाद कई देशों पर नई टैरिफ नीति लागू हो सकती है। भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए इसका मिश्रित परिणाम सामने आ सकता है।
चीन पर अमरीका खासतौर से सीमा शुल्क का शिकंजा कसना चाहता है इसलिए चीन अपने उत्पादों के निर्यात के लिए भारत जैसे विशाल बाजार पर विशेष ध्यान दे सकता है।
इससे भारत में चाइनीज सामानों की डम्पिंग बढ़ने का खतरा रहेगा। उधर अमरीका भी भारत में अपने सोयाबीन (तेल एवं मील सहित), मक्का एवं एथनॉल का निर्माण करने का इच्छुक है और इसके लिए भारत पर जबरदस्त दबाव डाल रहा है। इससे भविष्य में विचित्र स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
बांग्ला देश, वियतनाम, ब्राजील तथा कम्बोडिया सहित अनेक देश अमरीका में अपने उत्पादों पर आयात शुल्क घटाने के लिए उसके साथ बातचीत कर रहे हैं। भारतीय कृषि क्षेत्र के लिए यह शुभ संकेत नहीं है।
भारत को अमरीका एवं यूरोपीय संघ जैसे बड़े बाजार की सख्त जरूरत है। वहां अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा बढ़ने से भारत को नुकसान हो सकता है।
इतना तो निश्चित लगता है कि भविष्य का परिदृश्य सभी देशों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होगा और इसलिए भारत को अपनी कृषि व्यापार नीति में सटीक, संयुक्त और व्यावहारिक बदलाव करना पड़ सकता है।
बेहतर क्वालिटी के कारण भारतीय उत्पाद महंगे होते हैं इसलिए इसके निर्यात प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का खतरा बढ़ सकता है।