ट्रम्प द्वारा 50% टैरिफ की पुष्टि के बाद सोने की कीमतों में तेजी, तांबे में तेजी जारी
iGrain India - भारत दुनिया में खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक देश है और यहां प्रतिवर्ष औसतन 145-150 लाख टन खाद्य तेल मंगाया जाता है जबकि घरेलू उत्पादन इससे बहुत कम होता है। इस तरह खाद्य तेलों के आयात पर देश की निर्भरता 55-60 प्रतिशत के उच्च स्तर पर बरकरार है। हाल के वर्षों में खाद्य तेलों का आयात बढ़कर 150-160 लाख टन के बीच पहुंच गया जबकि दो साल पूर्व यह 164 लाख टन के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा था। इस विशाल अंतर को पाटना निकट भविष्य में संभव नहीं दिखता है। केन्द्र सरकार द्वारा अक्टूबर 2024 में खाद्य तेल-तिलहन पर नेशनल मिशन आरंभ किया गया और इसके लिए 10,103 करोड़ रुपए की धनाशि आवंटित की गई। इस प्रयास का उद्देश्य वर्ष 2030-31 तक देश में तिलहन फसलों का सालाना उत्पादन बढ़ाकर 697 लाख टन तक पहुंचाना है। सरकार इसी अवधि में खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन भी बढ़ाकर 254.50 लाख टन पर पहुंचने का लक्ष्य रखा है जिससे उस समय तक खाद्य तेलों की कुल वार्षिक घरेलू जरूरत 353.50 लाख टन के 72 प्रतिशत भाग को पूरा करना संभव हो सकता है। उत्पादन का लक्ष्य बहुत बड़ा और महत्वाकांक्षी है। इसे हासिल करने के लिए अत्यन्त गंभीर, व्यापक एवं समेकित प्रयास की जरूरत है। लेकिन इसके रस्ते में अनेक अड़चनें- बाधाएं आएंगी और उसे किस तरह दूर किया जाता है यह देखना आवश्यक होगा। खाद्य तेलों की घरेलू मांग एवं खपत नियमित रूप से बढ़ती जा रही है जिस पर अंकुश लगाना बहुत कठिन है। बढ़ती मांग एवं खपत को पूरा करने के लिए विदेशों से आयात बढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है।
अगस्त 2021 में सरकार ने नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल- ऑयल पाम की शुरुआत की थी और इसके तहत 2025-26 तक क्रूड पाम तेल का घरेलू उत्पादन 11.20 लाख टन पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा था ऑयल पाम के लिए 6.64 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में नए बागान लगाने की योजना बनाई गई थी लेकिन इसकी रफ्तार अत्यन्त धीमी देखी जा रही है। वित्त वर्ष 2024-25 तक केवल 1.89 लाख हेक्टेयर में पाम के नए बागान लगाए जा सके। उधर 2024-25 के रबी सीजन के दौरान देश में सरसों का बिजाई क्षेत्र और उत्पादन घट गया। अब खरीफ कालीन तिलहन फसलों- सोयाबीन, मूंगफली, तिल, सूरजमुखी एवं अरंडी आदि की बिजाई की तैयारी चल रही है लेकिन उससे पूर्व ही सरकार ने क्रूड खाद्य तेल पर मूल आयात शुल्क को 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत नियत कर दिया। ऐसे निर्णयों से घरेलू किसानों में दुविधा पैदा होती है और वे तिलहनों की खेती से हतोत्साहित होते हैं। तिलहनों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है मगर इससे किसानों को उत्पादन बढ़ाने का भरपूर प्रोत्साहन मिलने में संदेह है।