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कांग्रेस ने महिलाओं के लिए आरक्षण पर जोर दिया और अब इस मुद्दे पर चुप है...

प्रकाशित 09/09/2023, 10:29 pm
कांग्रेस ने महिलाओं के लिए आरक्षण पर जोर दिया और अब इस मुद्दे पर चुप है...

लखनऊ, 9 सितंबर (आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान अगर कोई एक मुद्दा जोकि लाउडस्पीकरों से गूंजा और अब पूरी तरह शांत हो गया है, तो वह महिला आरक्षण से जुड़ा है।जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने अपना 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' अभियान शुरू किया और महिलाओं के लिए 40 प्रतिशत टिकटों की घोषणा की, तो उन्होंने अन्य राजनीतिक दलों को परेशान करने में कामयाबी हासिल की।

समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों ने चुप्पी साधे रखी, लेकिन यह देखने के लिए स्थिति पर उत्सुकता से नजर रखी कि क्या महिलाओं के लिए कोटा इच्छित परिणाम देता है। यह मुद्दा बुरी तरह फ्लॉप हो गया और कांग्रेस ने अपना अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन किया। केवल एक महिला आराधना मिश्रा मोना विजेता बनी, जो एक अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं।

अधिकांश महिला उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई और कांग्रेस तब से इस मुद्दे पर चुप है। अन्य पार्टियों ने राहत की सांस ली है।

दिलचस्प बात यह है कि आज प्रियंका गांधी महिलाओं के लिए आरक्षण का कोई जिक्र नहीं करती हैं और पार्टी के रणनीतिकार भी इस मुद्दे को फिर से उठाने में कोई उत्सुकता नहीं दिखाते हैं।

यहां तक कि कांग्रेस के प्रचार अभियान की पोस्टर गर्ल प्रियंका मौर्य भी कांग्रेस को शर्मसार कर बीजेपी में शामिल हो गई हैं। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक वाई के. मिश्रा बताते हैं, ''कांग्रेस ने बिना किसी तैयारी के हवा में गोलियां चलाईं और गहरे पानी में कूद गईं।

प्रियंका ने महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं किया और उनकी उम्मीदवारों की पसंद बचकानी थी। उनमें से एक महिला ने घरेलू परेशानी का सामना किया था। महिलाओं को मीडिया में गौरव के संक्षिप्त क्षण मिले और वे राजनीतिक मुद्दों से पूरी तरह अपरिचित थी।"

वाई के. मिश्रा ने आगे कहा कि यह कांग्रेस ही थी, जिसने मूल रूप से महिला आरक्षण विधेयक को आगे बढ़ाया था। लेकिन, यह प्रियंका का बचकाना दृष्टिकोण था, जिसने इस मुद्दे को हमेशा के लिए नष्ट कर दिया।

कांग्रेस के किसी भी उम्मीदवार ने उस गंभीरता से राजनीति नहीं की है, जिसकी चुनाव के बाद जरूरत होती है। एक बिग बॉस शो में गया, जबकि दूसरा घरेलू लड़ाइयों में लौट आया है। हालांकि, इस मुद्दे पर कांग्रेस की नाकामी समाजवादी पार्टी (सपा) जैसी पार्टियों के लिए एक बड़ी राहत बनकर आई।

गौरतलब है कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि महिला आरक्षण विधेयक से ग्रामीण महिलाओं को कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि वे संपन्न वर्ग की महिलाओं की तुलना में उतनी आकर्षक नहीं हैं।

जब मार्च 2010 में विधेयक को मंजूरी के लिए राज्यसभा में पेश किया गया था, तो मुलायम सिंह यादव ने इसी तरह की टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि महिला आरक्षण विधेयक, यदि अपने वर्तमान स्वरूप में पारित हो गया, तो युवा पुरुषों को संसद में सीटी बजाने के लिए उकसाया जाएगा।

एक अन्य समाजवादी नेता शरद यादव ने भी इसी तरह की भावना व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि केवल 'परकटी' महिलाओं (संपन्न परिवारों से संबंधित छोटे बाल रखने वाली महिलाएं) को लाभ होगा।

दोनों नेताओं ने विधेयक का विरोध करने के लिए महिलाओं के बीच वर्ग भेद पैदा किया। दूसरी तरफ अखिलेश यादव नई पीढ़ी से हैं। वह महिला आरक्षण के मुद्दे पर भी संदिग्ध रूप से चुप रहे हैं। उनकी पत्नी डिंपल यादव मैनपुरी से सांसद हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी महिलाओं को दलीय राजनीति में आगे बढ़ाने में विश्वास नहीं रखती है। पार्टी में सक्रिय महिलाओं की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है।

पार्टी का रुख मुलायम सिंह जैसा ही है, हालांकि इस बारे में कोई नहीं बोलता। सपा ओबीसी जाति जनगणना पर जोर दे रही है लेकिन महिलाओं के लिए आरक्षण की बात नहीं करती है।

--आईएएनएस

एफजेड/एबीएम

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