लखनऊ, 17 सितंबर(आईएएनएस)। लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ी भारतीय जनता पार्टी के सामने अब अपने कोर वोटर को सहेजने की बड़ी चुनौती है। इसकी वजह है कि अभी हाल में हुए घोसी उपचुनाव ने इस बात को सिद्ध कर दिया है कि अगर इसके प्रति सजग नहीं हुए तो 2024 काफी जोखिम भरा हो सकता है।राजनीतिक जानकर बताते हैं कि चाहे घोसी हो या खतौली, भाजपा का अपना वोट बैंक छिटकता नजर आ रहा है। खतौली में जाट, गुर्जर, दलित और मुस्लिम विपक्ष की ओर चले गए। लेकिन भाजपा अपने परंपरागत वोट, ब्राह्मण, क्षत्रिय, त्यागी जैसे वोटों को संजोने में नाकाम रही। खतौली में 44 बूथों पर गठबंधन तो 25 बूथों पर भाजपा जीत सकी। कई बूथों पर भाजपा दहाई भी नहीं छू सकी। इन सभी जगहों पर मिश्रित वोटर थे।
वहीं घोसी उपचुनाव के मतदान में डाले गए कुल 2,17,571 वोटों में से सुधाकर को 57.19 प्रतिशत वोट हासिल हुए, जबकि दारा सिंह चौहान को 37.54 प्रतिशत वोट मिले। यह साफ संकेत है कि कार्यकर्ता की अनदेखी और प्रत्याशी बाहरी होना पार्टी के लिए जोखिम भरा रहा है। इस चुनाव में उनका परंपरागत वोट राजभर, वैश्य क्षत्रिय, ब्राम्हण भी खिसकता नजर आया। वोटरों ने उम्मीदवार के साथ भाजपा से भी नाराजगी दिखाई है। इसे बचाए रखने की भाजपा के सामने बड़ी चुनौती है।
घोसी में सपा गठबंधन के उम्मीदवार लगभग हर वर्ग को साधने में न सिर्फ कामयाब रहे बल्कि भाजपा के वोट बैंक में सेंधमारी करने में भी उन्हें सफलता मिली। घोसी की राजनीति पर नजर रखने वाले लोगों का मानना है कि घोसी सीट भाजपा के हाथ से फिसलने में दारा सिंह चौहान का दल बदलना सबसे बड़ा कारण रहा। स्थानीय और भाजपा के लोग दारा सिंह चौहान के स्वहित की वजह से चुनाव थोपे जाने से नाराज थे। इसी बात का फायदा सुधाकर सिंह को मिला, उन्होंने दारा सिंह को 42759 वोटों से शिकस्त दी।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि 2014 के समय में मोदी और भाजपा की लहर थी। इस कारण इन्हें फायदा और वोट मिला। लेकिन खतौली और मऊ के उपचुनाव में यह लहर नदारद रही, जो भाजपा को वोट दिला रही थी। इनका कोर वोटर, उम्मीदवार से नाराजगी या कोई अन्य कारण हो, पार्टी से खिसका है। सुधाकर को मऊ में करीब 58 फीसद वोट मिलना ही इस बात का संकेत है कि केवल यादव मुस्लिम ही नहीं उन्हे सामान्य वर्ग के साथ राजभर, भूमिहार, निषाद और दलित ने भी वोट दिया है। भाजपा को साफ संदेश है कि मतदाता हर समय आपके लिए ही नहीं है। लोकसभा चुनाव को लेकर जिस प्रकार विपक्षी एकता बना रहा है। उससे भाजपा को कड़ी चुनौती दे सकता है। अगर भाजपा ने लोकसभा चुनाव प्रत्याशी चयन में या रणनीति में कोई भी जोखिम लिया तो इनकी चुनौती बढ़ सकती है।
कई दशकों से यूपी की राजनीतिक में नजर रखने वाले रतनमणि लाल कहते हैं कि भाजपा का जो कोर वोटर होता है अगर उसकी अपेक्षा पूरी नहीं होती तो उन्हे झटका देते हैं। पार्टी के लोग कहते हैं कि जब कोई बड़ा चुनाव होता है तो हमारे साथ नजर आता है। यह पार्टी के अंदर की धारणा, माध्यम वर्गीय, कर्मचारी हो या व्यापारी हो उपचुनाव जैसे झटके देते हैं।
उन्होंने कहा, एक बड़ा वर्ग ऐसा सोचता है कि जो अपेक्षाएं वो पूरी नहीं हुई तो वह दूसरी ओर रुख करते हैं। लोगों में यह सोच भी देखने को मिलती है कि इस सरकार ने दस साल में इतना ही मिला है अब दूसरे को देखते हैं। दूसरा फैक्टर जाति और धर्म का कॉम्बिनेशन है जो भाजपा को नुकसान पहुंचाता है। एक वर्ग को लगता है कि उनकी पूछ नहीं हो रही है। लेकिन भाजपा के लोग मानते है कि जब भी कोई बड़ा चुनाव होगा तब यह वोटर उनके साथ नजर आयेगा।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता आनंद दुबे वोटर के छिटकने वाली बात से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। उनका कहना हैं कि भाजपा के जो भी वोटर हैं वो पूरी मजबूती के साथ पार्टी के साथ हैं। कई बार चुनाव के समीकरण मुद्दे और परिस्थिति अलग होती है। उनका अलग अलग प्रभाव होता है। उपचुनाव का सरकार में कोई असर नहीं पड़ता है। 2014 से लेकर अब तक जितने भी चुनाव हुए हैं यूपी की जनता ने भाजपा का साथ दिया। एक आध उपचुनाव में भाजपा को सफलता नहीं मिली, उसकी समीक्षा हो रही है। लेकिन ऐसे में यह मानना कि भाजपा का मूल वोटर उससे छिटक रहा है, ऐसा बिल्कुल नहीं है।
--आईएएनएस
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