बेंगलुरु, 21 नवंबर (आईएएनएस)। चित्रदुर्ग के ऐतिहासिक मुरुघा मठ के संत शिवमूर्ति मुरुघा शरणारू को बड़ी राहत देते हुए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मंगलवार को उनके खिलाफ मामलों की जांच पर स्थगन आदेश जारी किया है। न्यायमूर्ति एम. नागाप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने आरोपी संत के खिलाफ चित्रदुर्ग के द्वितीय अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय के समक्ष मामलों पर स्थगन आदेश जारी किया।
आरोपी संत की ओर से दलील देने वाले वरिष्ठ वकील सीवी. नागेश ने अदालत से कहा कि स्थानीय अदालत द्वारा आरोपी साधु के खिलाफ पूर्वाग्रहपूर्ण कार्रवाई के कारण गवाहों की जांच की प्रक्रिया को दूसरी अदालत में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
वकील नागेश ने आगे तर्क दिया कि उच्च न्यायालय द्वारा जमानत दिए जाने के बाद स्थानीय अदालत ने तत्काल रिहाई के आदेश जारी नहीं किए।
रिहाई आदेश जारी करने में भी देरी हुई, जिसके परिणामस्वरूप आरोपी संत को तीन दिनों तक जेल में रहना पड़ा।
जांच आगे न बढ़ाने के निर्देश के बावजूद अभी भी जांच की जा रही है। आरोपी संत के चित्रदुर्ग में प्रवेश पर प्रतिबंध के स्थगन आदेश के बावजूद, गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था।
उन्होंने कहा कि उन्हें गिरफ्तार करने का निर्णय इस संबंध में उच्च न्यायालय के आदेशों को कमजोर करने के लिए किया गया था।
16 नवंबर को 14 महीने की कैद के बाद जमानत पर रिहा हुए संत को 20 नवंबर को दावणगेरे से दूसरे पॉक्सो मामले में फिर से गिरफ्तार किया गया था।
हालांकि, कुछ ही घंटों के भीतर, उच्च न्यायालय ने कानूनी आधार पर उनकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज ने सोमवार शाम इस संबंध में एक जरूरी याचिका पर गौर करने के बाद निचली अदालत द्वारा जारी गैर-जमानती वारंट पर रोक लगा दी थी।
पीठ ने निचली अदालत के कदम पर आपत्ति जताते हुए कहा कि सिर्फ इसलिए कि यह एक सनसनीखेज मामला है, हाई कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या नहीं की जानी चाहिए।
न्यायाधीश सूरज गोविंदराज ने कहा, ''मामले में उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता है क्योंकि तथ्य और जिस तरीके से चित्रदुर्ग अदालत ने आदेश पारित किए हैं, उससे संकेत मिलता है कि उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश का उल्लंघन करके याचिकाकर्ता के साथ घोर अन्याय हुआ है। वही एक बहुत ही अजीब स्थिति को दर्शाता है।''
एक सितंबर, 2022 को आरोपी संत को गिरफ्तार कर लिया गया।
उन पर पॉक्सो अधिनियम, आईपीसी धाराओं, किशोर न्याय अधिनियम, धार्मिक संस्थान अधिनियम आदि के तहत आरोप लगाए गए हैं।
--आईएएनएस
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