भोपाल, 21 नवंबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मतदान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह की सक्रियता बढ़ गई है। वे उन इलाकों तक पहुंच रहे हैं, जहां कांग्रेस उम्मीदवार या उसके समर्थकों के सामने किसी तरह की समस्या आई है। अब तो सियासी गलियारे में उनकी सक्रियता के मायने भी खोजे जा रहे हैं। राज्य की 230 विधानसभा सीटों के लिए एक चरण में 17 नवंबर को मतदान हो चुका है। मतदान का प्रतिशत वर्ष 2018 की विधानसभा चुनाव से ज्यादा रहा। कुल मिलाकर राज्य में अब तक हुए मतदान के प्रतिशत से कहीं ज्यादा है। इसके चलते सत्ताधारी दल भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस दोनों उत्साहित हैं और उन्हें लगता है कि बढ़े हुए मतदान प्रतिशत का लाभ उन्हें ही मिलेगा।
एक तरफ जहां सियासी समीकरण को समझा जा रहा है, उलझे सवालों व समीकरण को सुलझाया जा रहा है तो वही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह कार्यकर्ताओं के संपर्क में हैं। मतदान के दिन छतरपुर जिले के राजनगर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस समर्थक सलमान खान की वाहन से दबकर मौत हो गई। इस मामले में भाजपा विधायक अरविंद पटेरिया और उनके साथियों पर हत्या कराने का केवल आरोप लगा, बल्कि मामला भी दर्ज हुआ।
इसके बाद दिग्विजय सिंह अपनी धर्मपत्नी अमृता राय के साथ राजनगर पहुंच गए। यहां पूर्व मुख्यमंत्री ने हत्या के आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर थाने के सामने धरना दिया और रात भर वहां सोए भी। इसके बाद सागर जिले के रहली में कांग्रेस उम्मीदवार और उनके समर्थकों पर हुए हमले की जानकारी मिलने पर पूर्व मुख्यमंत्री वहां पहुंचे। साथ ही भाजपा उम्मीदवार और मंत्री गोपाल भार्गव के साथ भाजपा कार्यकर्ताओं की कार्यशैली पर सवाल भी उठाए।
इसके अलावा उन्होंने जेल पहुंचकर भाजपा के बागी और अब कांग्रेस के नेता राजेंद्र धनोरा से मुलाकात की। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के मतदान के बाद सक्रिय होने को लेकर सियासी कयासबाजी जारी है। उसके मायने भी खोजे जा रहे हैं।
जानकारों की मानें तो चुनाव नतीजे आने के बाद दिग्विजय सिंह महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की तैयारी कर रहे हैं, जैसा उन्होंने वर्ष 2018 की विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत के बाद भूमिका का निर्वहन किया था। यह बात अलग है कि पूर्व मुख्यमंत्री की कार्यशैली के कारण ही ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थामा था।
राजनीति के जानकारों का मानना है कि कांग्रेस की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री कमलनाथ होंगे और संगठन की जवाबदारी से वे मुक्त हो जाएंगे, ऐसे में अध्यक्ष की कमान किसे सौंपी जाए, इसमें उनकी राय महत्वपूर्ण रहे, इसके लिए उन्होंने सियासी जमावट के लिए कदम अभी से बढ़ा दिए हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस सत्ता में नहीं आती तो क्या कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी लेंगे, इस पर सवाल है।
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