कोलकाता, 31 जनवरी (आईएएनएस)। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने बुधवार को शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय के खिलाफ कानूनी लड़ाई का पहला दौर जीत लिया, पश्चिम बंगाल के बीरभूम की जिला अदालत ने पिछले साल सेन के खिलाफ विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा जारी निष्कासन के नोटिस को खारिज कर दिया। पिछले साल अप्रैल में विश्वविद्यालय परिसर के भीतर 13 डेसीमल भूमि के विवाद में उनके खिलाफ बेदखली नोटिस जारी होने के बाद सेन ने जिला अदालत का दरवाजा खटखटाया था। अधिकारियों ने दावा किया कि नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री ने जमीन के उस हिस्से पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है।
आखिरकार, जिला अदालत ने बुधवार को इस मामले में अपना फैसला सुनाया और विश्वविद्यालय अधिकारियों द्वारा जारी निष्कासन नोटिस को खारिज कर दिया। कोर्ट के आदेश पर अभी तक विश्व भारती के अधिकारियों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
सेन के वकील ने आदेश पारित होने के बाद कहा, "हम जीत गए हैं। अमर्त्य सेन को जमीन खाली नहीं करनी पड़ेगी। अदालत ने पाया कि उनके खिलाफ बेदखली नोटिस में तथ्यात्मक आधार का अभाव है।”
याद दिला दें, 13 डेसीमल जमीन को लेकर विवाद तब शुरू हुआ, जब विश्व भारती विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति विद्युत चक्रवर्ती ने सेन पर 1.38 एकड़ जमीन पर अवैध रूप से कब्जा करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया, जो कि उनकी 1.25 एकड़ की कानूनी पात्रता से अधिक है।
हालांकि, सेन ने इस आरोप का खंडन किया और दावा किया कि मूल 1.25 एकड़ जमीन उनके दादा स्वर्गीय क्षितिमोहन सेन को उपहार में दी गई थी, जो विश्व भारती विश्वविद्यालय के दूसरे वीसी थे।
बाद में सेन के पिता दिवंगत आशुतोष सेन, जो उसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे, ने बाकी 13 डेसीमल जमीन खरीदी, जो विवाद के केंद्र में है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने हाल ही में विश्वविद्यालय अधिकारियों द्वारा बेदखली के किसी भी प्रयास को विफल करने के लिए 1.38 एकड़ भूमि का पट्टा अधिकार सेन को हस्तांतरित कर दिया था।
--आईएएनएस
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