नई दिल्ली, 27 सितंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को अनिर्दिष्ट (अनस्पेशिफाइड) डिग्री देने वाले विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई करने और दंडात्मक प्रावधानों सहित कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि यूजीसी द्वारा अनुमोदित डिग्रियों को निर्दिष्ट करने से शिक्षा मानकों में एकरूपता बनाए रखने का उद्देश्य पूरा होता है।
अदालत ने कहा कि अनिर्दिष्ट डिग्री पाठ्यक्रमों का अध्ययन करने वाले छात्रों को उनकी डिग्री यूजीसी द्वारा गैर-मान्यता प्राप्त लगेगी।
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि यूजीसी के पास अनिर्दिष्ट डिग्री देने वाले विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का अधिकार है, और ऐसे संस्थान विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956 की धारा 24 के तहत दंड के लिए उत्तरदायी हैं।
अदालत राहुल महाजन नामक व्यक्ति द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने छात्रों को अनिर्दिष्ट पाठ्यक्रम देने वाले संस्थानों के खिलाफ कार्रवाई करने में यूजीसी की विफलता की ओर इशारा किया था।
महाजन ने प्रणालीगत विफलता के लिए जिम्मेदार लोगों की जांच करने और उन्हें जवाबदेह ठहराने के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की एक स्वतंत्र समिति के गठन की मांग की, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर अनिर्दिष्ट डिग्रियां प्रदान की गईं।
पीठ ने यूजीसी के रुख पर गौर किया कि निर्दिष्ट नहीं की गई डिग्री प्रदान करने वाले विश्वविद्यालयों या कॉलेजों द्वारा कानून और उसके निर्देशों का कोई भी उल्लंघन ऐसी अनिर्दिष्ट डिग्रियों को वैधानिक निकाय द्वारा गैर-मान्यता प्राप्त मान लेगा।
अदालत ने कहा, “उपरोक्त के मद्देनजर इस रिट याचिका में कोई आदेश पारित करने की जरूरत नहीं है। हालांकि, यूजीसी को यूजीसी अधिनियम, 1956 के प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए उचित आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है।”
अदालत ने यूजीसी अधिनियम, 1956 को लागू करने और डिग्री विनिर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए यूजीसी के रुख को स्वीकार किया।
--आईएएनएस
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