नई दिल्ली, 21 सितंबर (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने एकल न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रखते हुए दिल्ली सरकार के दो परिपत्रों को खारिज कर दिया, जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) या वंचित समूह (डीजी) श्रेणी के तहत निजी स्कूलों की ऑनलाइन दाखिला प्रक्रिया में बच्चे के लिए आधार कार्ड पेश करना अनिवार्य बताया गया है। अदालत ने कहा कि इससे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत बच्चे की निजता के अधिकार का हनन हो सकता है।एक बच्चे के पिता ने याचिका दायर कर कहा था कि उनका 5 साल का बच्चा ऑनलाइन दाखिला प्रक्रिया में भाग लेने में असमर्थ है, क्योंकि उसके पास आधार कार्ड नहीं है।
अनूप जयराम भंबानी की एकल न्यायाधीश पीठ ने यह कहते हुए परिपत्रों पर रोक लगा दी कि किसी बच्चे को आधार कार्ड रखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता और इसके बिना शिक्षा तक पहुंच से इनकार करना अस्वीकार्य है।
सरकार का तर्क था कि आधार की जरूरत का उद्देश्य डुप्लिकेट एडमिशन फार्मों को रोकना और छात्र की सटीक पहचान सुनिश्चित करना है।
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रखा और इस बात पर जोर दिया कि यह एक अंतरिम आदेश था और एकल न्यायाधीश को मामले पर अभी अंतिम विचार करना बाकी है।
अदालत ने के.एस. पुट्टास्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि किसी बच्चे की संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी प्राप्त करने से उसकी निजता के अधिकार का हनन हो सकता है।
न्यायमूर्ति भंभानी की पीठ ने 27 जुलाई के आदेश पर रोक लगाने के खिलाफ सरकार की अपील को खारिज करते हुए कहा, ''इस प्रकार यह कहना पर्याप्त होगा कि विवादित परिपत्र प्रथम दृष्टया संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत हैं, इसलिए पिछले साल 12 जुलाई और चालू वर्ष के 2 फरवरी को जारी परिपत्रों के अमल पर रोक लगाई जा रही है।''
एकल न्यायाधीश याचिका पर अब 6 नवंबर को सुनवाई करने वाले हैं।
--आईएएनएस
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