नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)। स्मार्टफोन लगातार विकसित हो रहे हैं। दुनिया भर में हर स्मार्टफोन ब्रांड अपने यूजर्स को बेस्ट फोन का एक्सपीरियंस देने की कवायद में जुटा है। इसके लिए वे अपने अनुसंधान एवं विकास में भारी निवेश करते हैं।पिछले कुछ सालों में बड़े बदलावों से गुजरे इन फोन्स का एक महत्वपूर्ण फीचर कैमरा है। पहले मोबाइल फोन कैमरे में मात्र 0.1 मेगापिक्सल से लेकर आज के 200 मेगापिक्सल स्मार्टफोन कैमरे तक, कैमरा टेक्नोलॉजी ने एक लंबा सफर तय किया है।
कैमरा टेक्नोलॉजी में लेटेस्ट इनोवेशन और विकसित हुआ है, जिसमें पेरिस्कोप कैमरे फ्लैगशिप फोन में शाइनी नए फीचर्स के तौर पर सामने आए हैं। जैसे-जैसे उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है, क्या यह मान लेना सही है कि फ्लैगशिप फोन में हाई मेगापिक्सेल काउंट की इच्छा धीरे-धीरे खत्म हो रही है?
स्मार्टफोन यूजर्स में लंबे समय से मिथक है कि उनके कैमरे में मेगापिक्सल की संख्या जितनी ज्यादा होगी, उससे क्लिक इमेज का आउटपुट उतना ही बेहतर होगा। ज्यादा मेगापिक्सल का मतलब हाई रिजॉल्यूशन के बराबर से नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि कम मेगापिक्सल वाले कैमरे कभी-कभी ज्यादा मेगापिक्सल वाले कैमरों की तुलना में बेहतर क्वालिटी वाली इमेज दे सकते हैं।
जब फ्लैगशिप लेवल के स्मार्टफोन कैमरों की बात आती है, तो आमतौर पर कैमरा सेंसर में पिक्सल का क्वालिटी उनकी क्वांटिटी से ज्यादा जरुरी होता है। कैमरे के लेंस का साइज और इमेज क्वालिटी पर प्रभाव महत्वपूर्ण हो सकता है, जो अक्सर सेंसर के मेगापिक्सल काउंट के प्रभाव से ज्यादा होता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि कैमरे का इमेज प्रोसेसर फोटो डेटा को कैसे संभालता है।
कई कैमरे में इमेज को ऑटो-शार्प करने का फीचर होता है, जो कभी-कभी इमेज क्वालिटी को खराब कर सकता है। 100 मेगापिक्सल मिड-रेंज फोन कैमरे को 50 मेगापिक्सल फ्लैगशिप-लेवल कैमरे की तुलना में कम क्वालिटी फोटोज लेते देखना हैरानी की बात नहीं है।
किसी पिक्चर की क्वालिटी हार्डवेयर, सॉफ़्टवेयर और पर्सलन प्रेफरेंस के संयोजन से प्रभावित होती है। स्मार्टफोन कैमरों का वर्किंग प्रोसेस, इंडिविजुअल कंपोनेंट्स और उनके परफॉर्मेंस को कैसे मापा जाता है, इसे समझने से इस बात पर प्रकाश डाला जा सकता है कि मेगापिक्सल कैमरे की क्वालिटी का एकमात्र निर्धारक क्यों नहीं है। एफ-स्टॉप वैल्यू या एपर्चर सेंसर साइज से पास से जुड़ा हुआ है।
जब जूम की बात आती है, तो ज्यादातर स्मार्टफोन कैमरे आमतौर पर ऑप्टिकल जूम की बजाय डिजिटल जूम की पेशकश करते हैं। ऑप्टिकल ज़ूम में वास्तविक लेंस मूवमेंट शामिल होता है, डिजिटल ज़ूम पिक्सल को बड़ा करने के लिए सॉफ़्टवेयर एल्गोरिदम पर निर्भर करता है। स्मार्टफोन में इमेज स्टेबलाइजेशन पर डिजिटल के रूप में आता है, जिसके चलते मामूली वीडियो अस्थिर हो सकता है। इसके विपरीत, ऑप्टिकल इमेज स्टेबलाइजेशन, कैमरे के लेंस को शिफ्ट करने के लिए छोटे जाइरोस्कोप का उपयोग करके, इमेज स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है।
पिछले साल तक, प्रीमियम लेवल के स्मार्टफोन में इमेज क्वालिटी बढ़ाने की मेगापिक्सल काउंट को बढ़ाना था। हालांकि, हाई-एंड स्मार्टफोन के क्षेत्र में, प्रवृत्ति अब केवल पिक्सल की संख्या बढ़ाने के बजाय समग्र इमेज क्वालिटी को बढ़ाने की ओर अधिक झुक रही है। शीर्ष स्मार्टफोन ब्रांड इस साल से अपने नए स्मार्टफोन में पेरिस्कोप कैमरा पेश करके इसे प्रोत्साहित कर रहे हैं।
पेरिस्कोप कैमरा टेक्नोलॉजी स्मार्टफोन को भारी बनाए बिना जूम क्षमताओं में सुधार करती है। यह एक सबमरीन पेरिस्कोप की तरह काम करता है, जो एक पतली आवरण में ज्यादा लेंस और शक्ति की अनुमति देता है। पारंपरिक टेलीफोटो लेंस के विपरीत, जो 2 गुना या 3 गुना ज़ूम प्रदान करते हैं, पेरिस्कोप लेंस फोन की मोटाई बढ़ाए बिना 5 गुना और 10 गुना ऑप्टिकल ज़ूम प्रदान करते हैं।
यह दूर के हाई-रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें कैप्चर करने में सक्षम बनाता है, जिससे स्पष्ट इमेज प्राप्त होती हैं। इसके अलावा, पेरिस्कोप कैमरे हाई मेगापिक्सेल काउंट पर भरोसा किए बिना हाई क्वालिटी तस्वीरें तैयार कर सकते हैं।
यह इस धारणा को रेखांकित करता है कि अनावश्यक पिक्सल पर पैसा खर्च करना लागत प्रभावी नहीं है। ऐसे फ्लैगशिप स्मार्टफोन में निवेश करना समझदारी है, जिसमें बेहतर लेंस क्वालिटी वाला कैमरा, बड़ा सेंसर और अधिक कुशल इमेज प्रोसेसर हो, जैसा कि आपको टेलीफोटो लेंस में मिलता है।
--आईएएनएस
पीके/एबीएम