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गोवा में खनन पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग हुई तेज

प्रकाशित 23/03/2022, 09:04 pm
गोवा में खनन पर लगे प्रतिबंध को हटाने की मांग हुई तेज

नयी दिल्ली, 23 मार्च (आईएएनएस)। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गोवा में जीत का परचम लहराने के बाद से एक बार फिर वहां खनन पर लगाये गये प्रतिबंध को हटाने की मांग तेज हो गयी है। यह मामला चूंकि सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसीलिए इसके लिये विधायी स्तर पर उपाय करने की मांग की जा रही है। गोवा में चार साल पहले खनन पर प्रतिबंध लगाया गया था और उद्योग संगठनों की माने तो इससे न सिर्फ राज्य सरकार के खजाने पर असर पड़ा है बल्कि आम लोगों की आजीविका भी बुरी तरह प्रभावित हुई है।

सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2018 में गोवा के 88 खनन पट्टों को रद्द कर दिया था, जिससे स्थानीय लौह अयस्क उद्योग ठप हो गया। इस फैसले से राज्य के तीन लाख से अधिक लोगों की आजीविका प्रभावित हुई है।

विभिन्न हितधारकों ने खनन दोबारा शुरू करने की कई बार अपील की है लेकिन इसके बावजूद अब तक प्रतिबंध लगा हुआ है।

इसी क्रम में अब सीआईआई के गोवा स्टेट काउंसिल और गोवा चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने राज्य की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लगाने के लिये खनन पर लगा प्रतिबंध हटाने का आग्रह किया है।

गत सप्ताह गोवा माइनिंग पीपुल्स फ्रंट (जीएमपीएफ) ने भी राज्य और केंद्र सरकार से इस मामले में कार्रवाई करने का आग्रह किया था।

सीआईआई गोवा ने राज्य में खनन फिर से शुरू करने के लिये केंद्र और राज्य सरकार से सिफारिश की है। एक शीर्ष उद्योग निकाय के रूप में सीआईआई गोवा की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये खनन को फिर से शुरू करने की जोरदार सिफारिश करता है।

गोवा में पुर्तगाली कानून के तहत खनन रियायतें स्थायी रूप से दी गयी थीं लेकिन उन्हें उन्मूलन अधिनियम 1987 द्वारा खनन पट्टों में बदल दिया गया था।

उद्योग संगठनों का कहना है कि 2015 एमएमडीआर संशोधन अधिनियम, के तहत अनुदान की तारीख से 50 वर्ष की अवधि का लाभ, जो पूरे देश में पट्टों के लिये उपलब्ध है, उसे गोवा के पट्टों के लिये भी उपलब्ध कराया जाये। हालांकि, पट्टे 1987 में अस्तित्व में आये लेकिन इन्हें 1961 से ही प्रभावी बना दिया गया ताकि 1961-1987 तक इन पट्टों से प्राप्त राजस्व सरकार के पास ही रह सके।

इस संबंध में दायर याचिका हाईकोर्ट रद्द कर चुका है और यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष लंबित है। खनन मंत्रालय ने भी सुप्रीम कोर्ट से आवेदन किया है कि इस मामले पर सुनवाई जल्द की जाये।

ऐसी स्थिति में खनन पट्टे के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता है लेकिन उद्योग संगठन का कहना है कि इस विषय के अगर विधायी स्तर पर निपटाया जाये तो खनन जल्द ही दोबारा शुरू किया जा सकता है।

गोवा में लौह अयस्क की बिक्री मूल्य का लगभग 30 प्रतिशत रॉयल्टी के रूप में जिला खनिज निधि, लौह अयस्क स्थायी निधि आदि में योगदान के रूप में राज्य के खजाने में जाता है।

सीआईआई गोवा स्टेट काउंसिल की अध्यक्ष स्वाति सलगांवकर का कहना है कि सरकार को राज्य की जरूरत और विकास को ध्यान में रखते हुये तत्काल कोई कदम उठना चाहिये।

गोवा चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (जीसीसीआई) के अध्यक्ष राल्फ डीसूजा ने कहा, खनन गोवा की अर्थव्यवस्था की जीवन रेखा है। गोवा को छोड़कर पूरे देश में खनन सामान्य रूप से चल रहा है। यह केंद्र सरकार पर निर्भर है कि वह उचित जांच और संतुलन के साथ खनन को फिर से शुरू करें। जीसीसीआई ²ढ़ता से महसूस करता है कि राज्य के वाणिज्य और उद्योग को मौजूदा आर्थिक सुस्ती से उबरने के लिये बढ़ावा देने की जरूरत है । पिछले चार वर्षों से खनन बंद होने और कोविड महामारी के कारण स्थिति खराब है। यूक्रेन पर हमला भी इसे किसी न किसी तरह प्रभाव करेगी ही। ऐसे में खनन को दोबारा शुरू करना जरूरी है। हम पहले ही राज्य सरकार के समक्ष यह मसला उठा चुके हैं। जीसीसीआई खनन से लाभ उठाने के अवसर की प्रतीक्षा कर रही है, जो अंतत: राज्य के बेरोजगारी संकट का समाधान करेगी।

गोवा खनिज अयस्क निर्यातक एसोसिएशन के सचिव ग्लेन कलावम्परा ने कहा, खनिजों का धन तब तक व्यर्थ है जब तक कि उन्हें मानव जाति के लाभ के लिये निकाला, संसाधित और वस्तु में परिवर्तित नहीं किया जाता है। गत चार साल से खनन कार्यों पर निर्भर लोग केवल दर्द, अवसाद और चिंता के अंतहीन दौर से गुजर रहे हैं।

उद्योग संघों ने कहा है कि आजीविका और आर्थिक गतिरोध को दूर करने के लिये राज्य में खनन गतिविधियों को तुरंत फिर से शुरू किया जाना चाहिये और गोवावासियों को एक स्थिर आय अर्जित करने और बेहतर भविष्य के लिए काम करने की अनुमति दी जानी चाहिये।

--आईएएनएस

एकेएस/आरजेएस

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