वाराणसी (यूपी), 30 जनवरी (आईएएनएस)। ज्ञानवापी मस्जिद प्रबंधन समिति व अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद (एआईएम) ने मस्जिद के वैज्ञानिक अध्ययन और सर्वेक्षण पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट को "एक झूठी कहानीस्थापित करने का प्रयास करार दिया है।
एआईएम के पास उपलब्ध इतिहास के आधार पर, उसने दावा किया कि इस मस्जिद का निर्माण 15वीं शताब्दी से शुरू होकर तीन चरणों में किया गया था।
एएसआई सर्वेक्षण रिपोर्ट पर पहली विस्तृत प्रतिक्रिया में, एआईएम के संयुक्त सचिव एस.एम. यासीन ने कहा: “एएसआई रिपोर्ट का विस्तृत अध्ययन कानूनी विशेषज्ञों और इतिहासकारों द्वारा किया जा रहा है। लेकिन, रिपोर्ट के प्रारंभिक अध्ययन के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि एएसआई रिपोर्ट के तथ्य और निष्कर्ष मई 2022 में किए गए कोर्ट कमिश्नर सर्वेक्षण से बहुत अलग नहीं हैं। वैज्ञानिक अध्ययन के नाम पर झूठी कहानी गढ़ने का यह एक प्रयास है।”
उन्होंने कहा,“हमारे पास उपलब्ध इतिहास के अनुसार, जौनपुर के एक अमीर आदमी शेख सुलेमानी मोहद्दिस ने 804-42 हिजरी (15 वीं शताब्दी की शुरुआत में) के बीच ज्ञानवापी में एक खुली जमीन पर मस्जिद का निर्माण कराया था। इसके बाद, मुगल सम्राट अकबर ने दीन-ए-इलाही के दर्शन के अनुसार मस्जिद का विस्तार शुरू किया और पश्चिमी दीवार के खंडहर उसी निर्माण का हिस्सा हैं।”
उन्होंने कहा कि औरंगजेब ने 17वीं शताब्दी में और विस्तार सुनिश्चित किया। उन्होंने कहा, यह इतिहास यह स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है कि मस्जिद औरंगजेब से पहले अस्तित्व में थी और इसका निर्माण और विस्तार तीन चरणों में किया गया था।
यासीन ने सवाल किया, "यह कैसे दावा किया जा सकता है कि यह एक भव्य हिंदू मंदिर ही था?" वाराणसी भी बौद्धों का एक प्रमुख केंद्र रहा है और शंकराचार्य के आगमन के बाद बौद्धों को यहां से पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। वास्तविक इतिहास जानने के लिए इस बात का भी अध्ययन किया जाना चाहिए कि क्या यहां कोई बौद्ध मठ या मंदिर मौजूद था। अगर शहर की खुदाई की जाए तो बौद्ध और जैन धर्म के कई तथ्य भी मिल सकते हैं।”
सर्वेक्षण के दौरान एएसआई द्वारा पाए गए मूर्तियों, सिक्कों और अन्य वस्तुओं के हिस्सों और जिला मजिस्ट्रेट की कस्टडी में जमा किए जाने के बारे में, यासीन ने कहा: “1993 से पहले, ज्ञानवापी के आसपास का क्षेत्र खुला था और इसे डंपिंग यार्ड में बदल दिया गया था। जब एएसआई ने सर्वे शुरू किया तो मस्जिद के पीछे की तरफ करीब 10 फीट ऊंचा मलबे का ढेर पड़ा हुआ था, जबकि तहखानों में 3 फीट ऊंचाई तक मलबा देखा गया., ये वस्तुएं उसी मलबे से बरामद की गईं, जो दशकों से मस्जिद के पास फेंकी गई थीं।”
यासीन ने दावा किया कि गैर-आक्रामक वैज्ञानिक अध्ययन के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद, एएसआई ने कई क्षेत्रों को खोदा।
उन्होंने कहा कि जीपीआर किसी भी स्थान पर किसी संरचना की संभावना को इंगित करने में मदद कर सकता है, लेकिन इसके माध्यम से किए गए अध्ययन के नतीजों के आधार पर, एक भव्य हिंदू मंदिर के दावे किए जा रहे हैं।
यासीन ने कहा कि एआईएम ज्ञानवापी सर्वेक्षण पर एएसआई की रिपोर्ट न केवल चुनौती देगा, उसकी रक्षा के लिए मामले भी लड़ता रहेगा, जहां भी वे दायर किए जाएंगे।
--आईएएनएस
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