नयी दिल्ली, 29 मई (आईएएनएस)। भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की कमजोर लिस्टिंग के साथ नये जमाने के कुछ कारोबारों ने भी आईपीओ बाजार के प्रति खुदरा निवेशकों की धारणा कमजोर की है। रेलीगेयर ब्रोकिंग के शोध प्रमुख सिद्धार्थ भामरे ने आईएएनएस को बताया कि आईपीओ के प्रति निवेशकों की धारणा को सर्वाधिक प्रभावित धड़ल्ले से निवेशकों को तगड़ा घाटा देने वाले नई पीढ़ी के कारोबारों ने किया।
जोमैटो, नायका और पेटीएम जैसे स्टार्टअप्स के शेयरों ने हाल के महीनों में निवेशकों को काफी चूना लगाया है।
भामरे ने आईएएनएस को कहा, इसके अलावा बाजार भी करेक्शन मोड में है तो ऐसी स्थिति में शानदार लिस्टिंग का लाभ नहीं मिलेगा। पूंजी जुटाने की पूरी कवायद बहुत दिलचस्प है। अधिकांश प्रबंधन बाजार धारणा का आकलन करके आईपीओ लाते हैं।
उन्होंने कहा कि बाजार में धारणा मजबूत होनी ही है और साथ ही कई आईपीओ भी आयेंगे। आईपीओ का उतारा जाना बाजार से जुड़ा है और किसी कंपनी की अच्छी या खराब लिस्टिंग से धारणा में बदलाव नहीं होता। एलआईसी के बारे में उन्होंने कहा कि इसका परिदृश्य सकारात्मक है।
भामरे ने कहा कि लिस्टिंग के बाद हुए करेक्शन से एलआईसी के शेयर खरीदने का अच्छा मौका मिला है और तेजी से बढ़ने की संभावना वाला यह सबसे सस्ता विकल्प है।
पेश हैं सिद्धार्थ भामरे के साथ साक्षात्कार के कुछ अंश:
प्रश्न: शेयर बाजार की मौजूदा उथल-पुथल को देखते हुए भारत में अपने निवेश के संबंध में एफआईआई/एफपीआई का क्या रूझान है। इस पर आपका क्या विचार है?
उत्तर: जब पूंजी आवंटन की बात आती है तो इसका फैसला लेने के लिए कई कारकों का ध्यान रखा जाता है। एफआईआई/एफपीआई के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा की मजबूती होती है। महंगे डॉलर से उन्हें निवेश पर लाभ नहीं मिलता इसी कारण ऐसे समय में वे डॉलर मूल्यवर्ग की परिसंपत्ति में निवेश करना पसंद करते हैं। ज्यादातर शेयर बाजार में करेक्शन हो रहा है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। महंगाई की आशंका के कारण शुरू हुआ बिकवाली का यह दौर ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रह सकता है।
प्रश्न: अत्यधिक अस्थिर स्थिति में किसी के पोर्टफोलियो को हेज करने के लिए कौन सी सुरक्षित परिसंपत्तियां हैं, विशेष रूप से खुदरा निवेशकों के लिए?
उत्तर: रेलीगेयर ब्रोकिंग में हमारा मानना है कि पारंपरिक ²ष्टिकोण से वांछित परिणाम नहीं मिलेंगे। सबसे पहले मुद्रास्फीति के कारण सुरक्षित परिसंपत्तियां अब सुरक्षित नहीं हैं। पांच प्रतिशत की एफडी 7-8 प्रतिशत की मुद्रास्फीति से मुकाबला नहीं कर सकती है। सोना अब आकर्षक स्तरों पर कारोबार नहीं कर रहा है। रियल एस्टेट में तरलता नहीं है तो ऐसी हालत में शेयर बाजार ही निवेश के लायक है।
आईटी, दवा और एफएमसीजी जैसे पारंपरिक रूप से सुरक्षित माने जाने वाले क्षेत्रों में निवेश को हेज नहीं माना जा सकता है क्योंकि वैल्यूएशन के लिहाज से इनमें से अधिकतर बहुत आकर्षक नहीं हैं। हालांकि, ऑटो, सीमेंट और चुनिंदा बैंक में मध्यम से दीर्घ अवधि के नजरिए से निवेश किया जा सकता है।
प्रश्न: कमोडिटी आधारित मुद्रास्फीति से निवेशकों की धारणा कैसे प्रभावित होगी? सरकार के नवीनतम उपायों को देखते हुए खुदरा महंगाई दर को आरबीआई की 2-6 प्रतिशत की सीमा में वापस आने में कितना समय लगेगा?
उत्तर: बाजार धारणा पहले से ही कमजोर है और इसीलिए शेयर बाजार में करेक्शन देखने को मिल रहा है। मुझे नहीं लगता कि सरकार भी यह बता पायेगी कि मुद्रास्फीति कब कम होगी, लेकिन उनके प्रयासों से पता चलता है कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना अभी सरकार और आरबीआई दोनों की पहली प्राथमिकता है। हमारे अनुमान के अनुसार आरबीआई द्वारा ब्याज दर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी स्थिति का सही आंकलन नहीं है। यह मुद्रास्फीति आपूर्ति संचालित है और ऐसे मामलों में जब मुख्य मुद्दे हल होते हैं, तब ही मुद्रास्फीति तेजी से गिरती है। आपूर्ति आधारित मुद्रास्फीति में सरकारों की बड़ी भूमिका होती है और हम देख रहे हैं कि उपाय किये जा रहे हैं।
प्रश्न: घटते विदेशी मुद्रा भंडार के साथ आरबीआई के लिए रुपये के तेज या तेजी से मूल्यह्रास का बचाव करना कितना मुश्किल होगा। केंद्रीय बैंक के पास उपलब्ध अन्य उपाय क्या हैं?
उत्तर: भारतीय रिजर्व बैंक के प्रति निष्पक्ष होते हुए यह कहा जा सकता है कि हमारी मुद्रा काफी स्थिर रही है। इसमें धीरे-धीरे गिरावट दर्ज की गई है। किसी भी मुद्रा के लिए उठापटक की कमी स्थिरता का एक प्रमुख संकेत है और रुपये ने हाल के दिनों में इन मानदंडों को पूरा किया है। रुपया सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया है, यह अच्छी हेडलाइन हो सकती है लेकिन यह हेडलाइन हर साल और हाल में हर कुछ महीने में देखी जा रही है। रुपये के मूल्यह्रास का प्रमुख कारण व्यापार घाटा है।
--आईएएनएस
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