नई दिल्ली, 28 दिसंबर (आईएएनएस)। नोएडा के सेक्टर-18 में मौजूद मॉल ऑफ इंडिया काफी चर्चित रहता है। यहां हर दिन अच्छी खासी भीड़ भी जुटती है। अब एक बार फिर ये मॉल चर्चा में है। दरअसल हाल ही में नोएडा प्राधिकरण ने इसी मॉल की जमीन को लेकर डीएलएफ को 235 करोड़ रुपये जमा करने का नोटिस भेजा है। मगर आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मॉल की जमीन 25 सालों तक विवादों में रही है। यही नहीं इस जमीन का विवाद इन सालों के दौरान विभिन्न अदालतों से होकर गुजरा है।पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में नोएडा प्राधिकरण इस जमीन की कानूनी लड़ाई हार गया और मुकदमा जीतने वाले व्यक्ति को नोएडा प्राधिकरण को 295 करोड़ रुपये का हर्जाना देना पड़ा। इसी को लेकर अब 23 दिसंबर को नोएडा प्राधिकरण ने डीएलएफ इंडिया को 235 करोड़ रुपये की रिकवरी का नोटिस भेजा है। हालांकि डीएलएफ सूत्रों ने सोमवार को कहा कि उन्हें नोटिस नहीं मिला है। जानकारी के मुताबिक मुकदमा जीते शख्स ने इस जमीन पर 1997 में 7,400 वर्ग मीटर के दो प्लॉट खरीदे थे, जो बाद में डीएलएफ इंडिया को अलॉट हुए थे। फिलहाल इसी जमीन पर मॉल ऑफ इंडिया खड़ा है।
आइए बताते हैं आखिर 1997 से 2022 तक क्यों मॉल ऑफ इंडिया की जमीन विवाद में फंसी रही। दरअसल 1997 में विरन्ना रेड्डी नाम के एक शख्स ने 1 करोड़ रुपये देकर छलेरा बांगर गांव में 7,400 वर्ग मीटर के दो प्लॉट खरीदे थे। उस वक्त आरोप लगा कि नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों ने पजेशन को लेकर उन्हें तंग करना शुरू कर दिया। साल 1997-98 में रेड्डी ने स्थानीय अदालत में प्राधिकरण के खिलाफ दीवानी मुकदमा दायर किया। प्राधिकरण के मुताबिक, वह जमीन कॉमर्शियल डिवेलपमेंट के प्लान में शामिल थी और रेड्डी का पजेशन गैरकानूनी है।
जानकारी के मुताबिक अदालत ने तब कहा कि बाकी जमीन पर कोई दखल नहीं दिया जा सकता, क्योंकि उसका मालिक रेड्डी है। इसके बावजूद, साल 2003 में इसी जमीन को लेकर टेंडर निकाला गया। जमीन डीएलएफ को अलॉट कर दी गई। डिवेलपर ने उस जगह पर मॉल ऑफ इंडिया खड़ा कर दिया। साल 2006 में प्राधिकरण ने जमीन के आधिकारिक अधिग्रहण और पजेशन के लिए नोटिफिकेशन भी जारी किया।
प्राधिकरण के इस नोटिफिकेशन को रेड्डी ने अदालतों में चुनौती दी। यह बात भी उठी कि जमीन के ऊपर काफी डिवेलपमेंट हो चुका है और टुकड़ों की सीमाएं तय कर पाना संभव नहीं है। इसके बाद फिर आया फैसला। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2021 में आदेश दिया कि प्राधिकरण की ओर से विरन्ना रेड्डी को हर्जाना दिया जाए। नोएडा प्राधिकरण ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि विरन्ना को 1.1 लाख रुपये प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से हर्जाना मिलना चाहिए। इसके अलावा 30 प्रतिशत सांत्वना के रूप में, हर्जाने की रकम पर 15 प्रतिशत ब्याज और सजा के रूप में 3 प्रतिशत ब्याज चुकाया जाना चाहिए। नोएडा प्राधिकरण ने इस फैसले को लेकर फिर रिव्यू पिटीशन दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त को उसे भी खारिज कर दिया। इसके बाद आदेश का पालन करते हुए दिसंबर 2022 में नोएडा प्राधिकरण ने विरन्ना रेड्डी को 295 करोड़ रुपये जारी कर दिए।
--आईएएनएस
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