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दुनिया के 50 फीसदी लोग नफरत और गुस्से के कारण आपस में लड़ रहे हैं, ऐसे में विश्वशांति की कल्पना संभव नहीं : इंद्रेश कुमार

प्रकाशित 20/10/2023, 10:35 pm
दुनिया के 50 फीसदी लोग नफरत और गुस्से के कारण आपस में लड़ रहे हैं, ऐसे में विश्वशांति की कल्पना संभव नहीं : इंद्रेश कुमार

नई दिल्ली, 20 अक्टूबर (आईएएनएस)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरकार्यवाह सुरेश भैय्याजी जोशी ने वर्तमान वैश्विक संकट के माहौल में सारे विश्व में शुद्धता के संस्कार, सकारात्मक सोच और धर्म के रास्ते पर चलने की आवश्यकता पर बल दिया तो वहीं आरएसएस से जुड़े मुस्लिम मंच- मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के संस्थापक एवं मुख्य सरंक्षक इंद्रेश कुमार ने इजरायल, फिलिस्तीन, यूक्रेन और रूस का नाम लिए बिना कहा कि मुस्लिम, ईसाई और यहूदी कुल आबादी के 50 फीसदी हैं, लेकिन इतना बड़ा समाज आज की तारीख में गुस्से व नफरत में जीते हुए आपस में लड़ रहा है, ऐसे में विश्वशांति की कल्पना नहीं की जा सकती है। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद, भारतीय सिंधु समाज और हिमालय परिवार द्वारा दिल्ली विश्विद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज में आयोजित सामाजिक समरसता और सिंधी समाज के कार्यक्रम में 'दिल की गीता' पुस्तक का विमोचन करते हुए सुरेश भैय्याजी जोशी ने अपने भाषण में इस बात पर जोर दिया कि भारतीय ऋषियों, मुनियों और भारतीय चिंतन ने समय-समय पर समरसता का संदेश रखा है। उपनिषद में भी भेदभाव नहीं, सर्वकल्याण की बात कही गई है।

उन्होंने कहा कि समरसता, समस्त जीवजगत और मानव समाज का उल्लेख गीता में दिया गया है। सभी के कल्याण की कामना की बात कही गई है। भैय्याजी जोशी ने गीता के संदेशों को संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए आवश्यक बताया। गीता में कर्मशील और भक्ति से पूर्ण संदेश दिया गया है। परंतु यह भक्ति और कर्म.. बिना ज्ञान के करना मूर्खता होती है। यह बातें सिर्फ हिंदुओं या एक समुदाय के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिए है। धर्म युद्ध में भगवान कृष्ण ने कहा था कि धर्म की रक्षा के लिए अधर्म के रास्ते पर भी चलना पड़े तो यह गलत नहीं है। अर्थात महत्वपूर्ण है धर्म की रक्षा करना।

इंद्रेश कुमार ने इस अवसर पर गीता के उपदेशों का उल्लेख करते हुए कहा कि रोटी, कपड़ा, मकान खून से नहीं श्रम से कमाया जाता है। गीता में श्री कृष्ण ने भी यही कहा था कि कर्म किए जा फल की चिंता न कर। अंग्रेजों को भी जब इस देश से भगाया गया था तो नारे जो आए थे वो थे.... तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।

उन्होंने कहा कि बापू ने भी रोटी, कपड़ा और मकान की नहीं स्वाभिमान की बात की थी। क्योंकि यह स्वाभाविक था कि अंग्रेजों से जब आजादी मिलेगी तो बाकी चीजें स्वतः मिलेंगी। इस मौके पर श्री कृष्ण द्वारा गीता में दिए उपदेशों को उर्दू और हिंदी में अनुवाद भी किया गया। गीता को उर्दू में ख्वाजा दिल मोहम्मद, हिन्दी में डॉक्टर प्रदीप कुमार जोशी, और उर्दू को देवनागरी में पंडित लक्ष्मण महाराज ने अनुवाद किया।

दिल्ली विश्विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह ने पुस्तक 'दिल की गीता' के लिए सब को बधाई देते हुए समरसता और गीता के भाव को एक ही बताया। उन्होंने गवर्नेंस और एडमिनिस्ट्रेशन पर रोशनी डालते हुए कहा कि इसे गीता के उपदेशों और गीता के भाव की तरह ही समझना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि कर्म किए जा फल की चिंता न कर। इसी तरह प्रशासन का काम होता है जनहित और लोक हित में काम करना।

इस मौके पर सिंधु समाज और मुस्लिम समाज की समरसता पर जोर दिया गया। पाकिस्तानी प्रांत सिंध के शहर सेहवान शरीफ में 13वीं सदी का लाल शहबाज़ कलंदर दरगाह है जिसकी मुस्लिम और सिंधी समाज दोनों ही जियारत करते हैं और यह सामाजिक समरसता का जबरदस्त उदाहरण है।

--आईएएनएस

एसटीपी/एबीएम

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