नई दिल्ली, 12 दिसंबर (आईएएनएस)। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने मंगलवार को उत्तराखंड में सिल्कयारा सुरंग के हिस्से के ढहने का मुद्दा उठाया, जिसमें 41 मजदूर 17 दिनों तक फंसे रहे।
उन्होंने इसी तरह की कई अन्य घटनाओं पर भी प्रकाश डाला और कहा कि इन्हें टाला जा सकता था, बशर्ते सरकार ने भूवैज्ञानिकों के साथ थोड़ा धैर्य दिखाया होता, जिन्होंने पहले चेतावनी दी थी कि इस प्रकार की सुरंगें विनाशकारी हो सकती हैं।
उन्होंने सरकार से यह भी स्पष्टीकरण मांगा कि क्या सुरंग में भागने के रास्ते की योजना बनाई गई थी या नहीं।
सदन में बोलते हुए चौधरी ने कहा, ''मैं सिल्कयारा बेंड-बारकोट सुरंग बचाव पर बोलना चाहूंगा। सुरंग में 41 मजदूर 17 दिनों तक फंसे रहे। यह कोई अकेली घटना नहीं है। मैं हिमालय में भूस्खलन की हाल की घटनाओं की भी रिपोर्ट करना चाहूँगा।”
अन्य घटनाओं का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, सुबनसिरी लोअर हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (एसएलएचईपी), तीस्ता नदी में बाढ़, 2015 में हिमाचल प्रदेश में किरतपुर-नेरचौक सुरंग ढहना, 2004 में टिहरी हाइड्रोइलेक्ट्रिक सुरंग ढहना।
उन्होंने ऐसी घटनाओं के कारणों का भी हवाला दिया और कहा कि विशेषज्ञों द्वारा बताए गए कारण हैं - खंडित या नाजुक चट्टान, पानी का रिसाव, भूस्खलन-प्रवण हिमालयी चट्टान प्रणाली, भूवैज्ञानिक और भू-तकनीकी अध्ययन की कमी, सीआर क्षेत्र का अनुचित अध्ययन और डिजाइन में विफलता।
उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आखिरी समय में, उन मजदूरों को बचाने के लिए रैट होल खनिकों को लगाया गया था।
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार अभी भी ऐसी घटनाओं पर प्रतिक्रिया नहीं दे रही है.
उन्होंने पूछा,“मीडिया के बयानों और संबंधित मंत्री द्वारा दिए गए बयानों के बीच भी अस्पष्टता और विरोधाभास है।''
--आईएएनएस
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