बेंगलुरु, 19 फरवरी (आईएएनएस)। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग छात्रा का यौन उत्पीड़न के आरोप में एक युवक को तीन साल की कैद की सजा सुनाई है। साथ ही 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।अदालत ने निचली अदालत के उस फैसले को भी रद्द कर दिया है, जिसमें आरोपी को बरी कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति श्रीनिवास हरीशकुमार की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अभियोजन पक्ष की आपराधिक अपील याचिका पर विचार करने के बाद हाल ही में आदेश पारित किया। यह घटना 26 अक्टूबर 2014 को चिक्कमगलुरु जिले के बलुरु थाना क्षेत्र में हुई थी।
जब आरोपी ने अपराध किया तब वह 18 साल का था और वर्तमान में 28 साल का है। अदालत ने अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के तहत उसे लाभ देने और उसे रिहा करने की याचिका भी खारिज कर दी। पीठ ने आगे रेखांकित किया कि पोक्सो अधिनियम 20 जून 2012 को लागू किया गया था। अदालत ने कहा कि अपराधियों की परिवीक्षा अधिनियम का लाभ अधिनियम के तहत किए गए अपराध के मामलों में अभियुक्तों को नहीं दिया जा सकता है।
कॉफी एस्टेट में काम करने वाले आरोपी ने पीड़िता को सड़क पर चलते समय जबरन पकड़ लिया और उसे सार्वजनिक शौचालय में खींच लिया। उसने उससे कहा था कि वह उससे प्यार करने लगा है। उसने उसे जबरन चूमा और उसके साथ जबरदस्ती की। पीड़िता किसी तरह आरोपियों के चंगुल से छूटकर अपने घर पहुंची थी।
इस संबंध में पीड़िता के पिता ने बलुरु थाने में मामला दर्ज कराया था। चिक्कमगलुरु की पोक्सो स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में आरोपी को यह दावा करते हुए बरी कर दिया था कि पिता और मां के बयान विरोधाभासी थे। अदालत ने कहा था कि पीड़िता के सबूत भरोसेमंद नहीं थे।
हालांकि पुलिस ने हाई कोर्ट में अपील की थी। लोक अभियोजक के.पी. यशोदा ने तर्क दिया कि पीड़िता, उसके माता-पिता और अन्य द्वारा दिए गए सबूतों से अपराध साबित होता है। उन्होंने यह भी कहा कि पीड़िता द्वारा अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न पर अदालत के समक्ष दिए गए बयान को कमतर नहीं आंका जा सकता।
पीठ ने कहा कि ''इस कारण से कि कोई भी पीड़िता की मदद के लिए नहीं आया, यौन उत्पीड़न की घटना से इनकार नहीं किया जा सकता है।'' पुलिस ने कहा था कि जहां घटना हुई थी उसके आसपास कोई घर नहीं था।
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