नई दिल्ली (आई-ग्रेन इंडिया)। उद्योग- व्यापार समीक्षकों का कहना है कि विदेशों से सस्ते खाद्य तेलों का विशाल आयात जारी रहने से घरेलू प्रभाग में तिलहनों की मांग एवं कीमत घट गई है जिससे उत्पादकों को काफी नुकसान हो रहा है। इसमें सरसों मुख्य रूप से शामिल है जिसका थोक मंडी भाव सभी प्रमुख उत्पादक राज्यों में घटकर सरकारी समर्थन मूल्य से काफी नीचे आ गया है।
सोयाबीन की कीमतों में भी गिरावट आई है लेकिन फिर भी यह समर्थन मूल्य से ऊपर चल रही है।
भरतपुर ऑयल मिलर्स एसोसिएशन (बोमा) के अध्यक्ष का कहना है कि सरकार पहले ही क्रूड श्रेणी के पाम तेल, सोयाबीन तेल एवं सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क में जबरदस्त कटौती कर चुकी है जिससे देश में सस्ते खाद्य तेलों का आयात बढ़ गया है और क्रशिंग-प्रोसेसिंग इकाइयों में सरसों की मांग काफी घट गई है।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सरसों की कीमतों में आई भारी गिरावट पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए आगाह किया है कि इससे रबी सीजन के इस सबसे महत्वपूर्ण तिलहन की खेती के प्रति किसानों का उत्साह एवं आकर्षण काफी घट सकता है।
रिफाइंड पामोलीन का निर्बाध और विशाल आयात जारी रहने से घरेलू बाजार में खाद्य तेल की कीमतों में जोरदार गिरावट आ गई है जिससे पीक आपूर्ति सीजन में सरसों का दाम भी नीचे लुढ़क गया है।
उद्योग व्यापार क्षेत्र सरकार से बार-बार खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने का आग्रह कर रहा है ताकि तिलहनों और खासकर सरसों के दाम में कुछ तेजी आ सके।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में क्रूड श्रेणी के पाम तेल, सोयाबीन तेल तथा सूरजमुखी तेल पर केवल 5 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगता है जबकि 10 प्रतिशत के शिक्षा सेस के साथ यह 5.5 प्रतिशत बैठता है। भारत में करीब 240-250 लाख टन खाद्य तेल की औसत वार्षिक खपत होती है जबकि इसके 55-60 प्रतिशत भाग का विदेशों से आयात किया जाता है।
इसमें पाम तेल का योगदान 80 लाख टन के आसपास रहता है जिसका आयात इंडोनेशिया, मलेशिया एवं थाईलैंड से किया जाता है।
खाद्य तेलों के कुल आयात में पाम तेल की भागीदारी 60 प्रतिशत के करीब रहती है। पिछले साल की तुलना में चालू वर्ष के दौरान इसके आयात खर्च में 40 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आ चुकी है।