नई दिल्ली (आई-ग्रेन इंडिया)। देश के प्रमुख उत्पादक राज्यों की महत्वपूर्ण मंडियों में गेहूं की आवक की गति धीमी पड़ती जा रही है जबकि अप्रैल-मई को पीक आपूर्ति का महीना माना जाता है। इससे संकेत मिलता है कि या तो इस खाद्यान्न का घरेलू उत्पादन काफी घट गया है या फिर बड़े-बड़े उत्पादकों- जमींदरों ने इसका भारी-भरकम स्टॉक रोकना आरंभ कर दिया है।
सरकारी क्रय केन्द्रों पर सन्नाटा बढ़ने लगा है। पंजाब-हरियाणा में खरीद की प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुकी है जबकि मध्य प्रदेश में भी यह अंतिम चरण में पहुंच गई है।
उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं बिहार के साथ-साथ गुजरात- महाराष्ट्र की मंडियों में भी गेहूं की सीमित आवक हो रही है और सरकारी खरीद निराशाजनक बनी हुई है।
हालांकि सरकार ने जुलाई से खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत अपने स्टॉक से गेहूं उतारने की घोषणा की है लेकिन यदि इसमें कोई अड़ंगेबाजी हुई तो मिल क्वालिटी वाला गेहूं 2500/2600 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच सकता है।
गेहूं में अब भी व्यापारियों एवं फ्लोर मिलर्स की अच्छी मांग बनी हुई है। सबका ध्यान सरकारी खरीद पर केन्द्रित हो गया है जो अब ठहराव के चरण में है। इतना तो निश्चित है कि गेहूं की कुल वास्तविक खरीद 341.50 लाख टन के नियत लक्ष्य से काफी पीछे रह जाएगी और बाजार पर इसका कुछ हद तक मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा। सरकार को हकीकत का पता है इसलिए उसने भी एहतियाती कदम उठाना शुरू कर दिया है।
गेहूं एवं इसके उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध को बरकरार रखने के संकेत दिए जा रहे हैं जबकि शेष परिस्थिति में इस पर भंडारण सीमा लागू करने पर भी विचार किया जा सकता है। लेकिन असली मामला उत्पादन का है।
कृषि मंत्रालय ने इस बार 1122 लाख टन गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन की संभावना व्यक्त की है जबकि वास्तविक उत्पादन इससे काफी कम हुआ है। जल्दी ही मंत्रालय का तीसरा अग्रिम अनुमान जारी होने वाला है तब गेहूं उत्पादन की तस्वीर स्पष्ट हो सकती है।