iGrain India - नई दिल्ली । अलनीनो मौसम चक्र की वजह से खरीफ कालीन फसलों के उत्पादन में आने वाली गिरावट का ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना है जिससे खासकर एफएमसीजी कंपनियों का कारोबार प्रभावित हो सकता है। उद्योग को आशंका है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मांग कमजोर पड़ सकती है।
वैसे पशुधन एवं मत्स्य उत्पादन के सहारे से अर्थव्यवस्था की कमजोरी कुछ हद तक दूर होने की उम्मीद की जा रही है। केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने 2023-24 के खरीफ सीजन हेतु विभिन्न फसलों के उत्पादन का जो पहला अग्रिम अनुमान जारी किया है वह उत्साहवर्धक तो दूर, संतोषजनक भी नहीं है।
चावल, दलहन, मोटे अनाज, तिलहन, गन्ना और कपास- सभी जिंसों के उत्पादन में गिरावट की संभावना व्यक्त की गई है। दलहनों के संवर्ग में उड़द एवं मूंग की पैदावार घटने का अनुमान लगाया गया है मगर आश्चर्यजनक रूप से अरहर (तुवर) की पैदावार में कुछ बढ़ोत्तरी होने की उम्मीद व्यक्त की गई है। उद्योग-व्यापार समीक्षकों का कहना है कि दूसरे-तीसरे अग्रिम अनुमान में तुवर के उत्पादन आंकड़ें को व्यवस्थित किया जा सकता है।
ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था मुख्यत: कृषि क्षेत्र पर आश्रित है इसलिए खरीफ फसलों का कमजोर उत्पादन किसानों की आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
अच्छी बात यह है कि दलहन-तिलहन फसलों का खुला बाजार भाव कुछ ऊंचा चल रहा है जबकि सरकार ने इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में भी अच्छी बढ़ोत्तरी की है।
सरकार ने चावल का निर्यात नियंत्रण करने के लिए हाल के महीनों में कुछ कदम उठाए हैं जबकि दलहनों एवं खाद्य तेलों के आयात की नीति को काफी उदार बना दिया है। घरेलू प्रभाग में खाद्य महंगाई की दर ऊंची है जिसे नीचे लाने के लिए आवश्यक प्रयास किए जा रहे हैं।
दरअसल सरकार को किसानों, उद्यमियों, व्यापरियों एवं आम उपभोक्ताओं- सबके हितों का ध्यान रखना पड़ता है और इसमें बेहतर संतुलन बनाए रखने की कोशिश करनी पड़ती है।
केन्द्रीय कृषि मंत्रालय ने 2022-23 की तुलना में 2023-24 के वर्तमान खरीफ सीजन के दौरान खाद्यान्न के कुल उत्पादन में 4.6 प्रतिशत, गन्ना में 11.1 प्रतिशत, दलहनों में 6.6 प्रतिशत, पोषक अनाजों में 9 प्रतिशत तथा कपास के उत्पादन में 5.9 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान लगाया है। आगे इसमें कुछ संशोधन- परिवर्तन हो सकता है।