iGrain India - भटिंडा । पंजाब में जिनिंग मिलों ने अनिश्चित कालीन हड़ताल शुरू कर दी है जिससे वहां कपास का कारोबार बुरी तरह प्रभावित होने की आशंका है।
दरअसल जिनिंग मिलें राज्य सरकार द्वारा दी गई उस नोटिस के खिलाफ हड़ताल कर रही हैं जो वर्ष 2010 से 2014 के दौरान कृषि उत्पादों पर लगाए गए 1 प्रतिशत के सेस से सम्बन्धित लंबित कर बकाया की रिकवरी के लिए दी गई है।
जिनिंग मिलों की हड़ताल के कारण राज्य की मंडियों में कपास की औसत दैनिक आवक 300 गांठ (170 किलो की प्रत्येक गांठ) से घटकर अब 400/500 गांठ पर सिमट गई है।
जिनिंग इकाइयों का कहना है कि जब तक राज्य सरकार उसकी मांग को स्वीकार नहीं करती है तब तक उसकी गतिविधियां बंद रहेंगी। मिलों की मांग है कि लंबित टैक्स बकाया की रिकवरी के लिए जारी नोटिस को वापस लिया जाए।
ध्यान देने की बात है कि इन इकाइयों की अनिश्चित कालीन हड़ताल ऐसे समय में हो रही है जब पंजाब की मंडियों में कपास के नए माल की आवक तेजी से बढ़ने वाली है।
व्यापारिक अवरोध के कारण राज्य में कपास की आवक चालू सप्ताह के पहले दिन नगण्य रह गई। पंजाब कॉटन फैक्टरीज एंड प्रेसिंग एसोसिएशन के सदस्य मिलर्स टैक्स नोटिस के खिलाफ हड़ताल कर रहे हैं।
उन्होंने तब तक किसानों से नरमा कपास (सीड कॉटन) नहीं खरीदने के निर्णय लिया है जब तक राज्य सरकार टैक्स नोटिस के वापस नहीं ले लेती।
उल्लेखनीय है कि पंजाब सरकार ने प्रथम खरीदार से कृषि उत्पाद के बिक्री मूल्य पर 1 प्रतिशत का पंजाब बुनियादी ढांचा विकास कोष सेस लगाया था। इसे वर्ष 2010 में लगाया गया था और वर्ष 2014 में वापस ले लिया गया था।
लेकिन इस अवधि के दौरान राज्य के एक्साइज एवं कराधान विभाग द्वारा उपयुक्त ढंग से टैक्स का कलेक्शन नहीं किया जा सका जिससे टैक्स की बहुत कम वसूली हुई।
प्राइवेट व्यापारियों एवं मिलर्स ने वर्ष 2010 से 2014 के दौरान टैक्स जमा नहीं किया। अब राज्य सरकार उसकी रिकवरी चाहती है जो करोड़ों रुपए की है।
पंजाब में आमतौर पर नवम्बर-दिसम्बर में कपास की आवक पीक पर रहती है इसलिए मौजूदा हड़ताल किसानों के लिए आर्थिक दृष्टि से घातक साबित है। यदि हड़ताल लम्बे समय तक जारी रही तो पंजाब के किसानों को हरियाणा एवं राजस्थान जैसे पड़ोसी राज्यों में अपना कपास बेचने के लिए विवश होना पड़ सकता है।