iGrain India - मुम्बई । भारत में 2022-23 के मार्केटिंग सीजन (नवम्बर-अक्टूबर) के दौरान वनस्पति तेलों का आयत अप्रत्याशित रूप से उछलकर 167.10 लाख टन के सर्वकालीन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया।
इससे घरेलू प्रभाग में खाद्य तेलों की आपूर्ति एवं उपलब्धता बहुत बढ़ गई और कीमतों में नरमी आ गई। स्वदेशी खाद्य तेल उद्योग तथा तिलहन उत्पादकों को इससे भारी कठिनाई हो रही है।
किसानों को अपने तिलहनों का लाभप्रद मूल्य प्राप्त करना मुश्किल हो गया है। आरबीडी पामोलीन का बढ़ता आयात भारतीय रिफाइनिंग उद्योग को बेहद परेशान कर रहा है।
वर्तमान समय में खरीफ कालीन तिलहन फसलों की जोरदार आवक तथा रबी कालीन तिलहन फसलों की बिजाई हो रही है। ऐसे समय में खाद्य तेलों के विशाल आयात का कीमतों पर असर पड़ना स्वाभाविक ही है।
सोयाबीन तथा सरसों का बाजार भाव घटकर नीचे आ गया है जिससे किसानों की चिंता बढ़ गई है। खाद्य तेल उद्योग सरकार से रिफाइंड तेलों और खासकर आरबीडी पामोलीन के आयात पर अंकुश लगाने का आग्रह कर रहा है मगर सरकार इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है।
मालूम हो कि भारत में रिफाइंड खाद्य तेल के संवर्ग में केवल आरबीडी पामोलीन का आयात होता है। वनस्पति तेल के रिकॉर्ड आयात से इस पर भारी-भरकम बहुमूल्य विदेशी मुद्रा खर्च हुई। राष्ट्रीय राजकोष पर इसका असर पड़ रहा है।
सरकार से कहा जा रहा है कि केवल घरेलू मांग एवं खपत को पूरा करने के लिए आवश्यक मात्रा में ही खाद्य तेलों का आयात सुनिश्चित किया जाए और इसका दाम ऊंचे स्तर पर रखने के लिए आयात शुल्क में अच्छी बढ़ोत्तरी की जाए ताकि स्वदेशी खाद्य तेल उद्योग तिलहन उत्पादकों से ऊंचे दाम पर उत्पाद खरीदने में सक्षम हो सके।
लेकिन सरकार की विवशता यह है कि वर्तमान समय में देश के पांच राज्यों में विधानसभा का चुनाव हो रहा है जबकि अगले साल की दूसरी तिमाही में लोकसभा के लिए आम चुनाव होना है। इसके फलस्वरूप वहां सीमा शुल्क बढ़ाकर खाद्य तेलों के आयात को महंगा बनाने का जोखिम नहीं उठाना चाहती है।