नवादा, 15 अप्रैल (आईएएनएस)। बिहार के नवादा सीट पर राजद से बगावत कर चुनावी मैदान में उतरे विनोद यादव ने यहां के संघर्ष को त्रिकोणीय बना दिया है। राजद के लिए यहां की राह अब मुश्किल नजर आने लगी है। इस चुनाव में नवादा सीट पर मुख्य मुकाबला एनडीए और विपक्षी महागठबंधन के बीच माना जा रहा था, लेकिन अब ये मुकाबला दिलचस्प हो गया है।सीट इस बार एनडीए के घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के बदले भाजपा के खाते में चली गई है। भाजपा ने नवादा से भूमिहार समाज से आने वाले विवेक ठाकुर को उम्मीदवार बनाया है, जबकि महागठबंधन की ओर से राजद ने श्रवण कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है।
राजद के प्रत्याशी की घोषणा होते ही राजद के नेता विनोद यादव पार्टी से खिलाफ़त कर चुनावी मैदान में उतर गए। देखा जाए तो इस सीट पर एनडीए का दबदबा रहा है।
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के भोला सिंह और वर्ष 2014 में गिरिराज सिंह ने जीत का परचम लहराया था। पिछले चुनाव में यह सीट लोजपा के खाते में थी और चंदन सिंह की जीत हुई थी। 2004 के चुनाव में राजद के प्रत्याशी वीरचंद्र पासवान यहां से विजयी हुए थे।
पूर्व विधायक राजवल्लभ यादव के भाई और विधायक विभा देवी के देवर विनोद यादव ने बागी तेवर अपनाते हुए माहौल को स्थानीय बनाम बाहरी बना दिया है। यादव को स्थानीय राजद विधायकों का भी समर्थन मिल रहा है, बताया जाता है कि राजद के बागी के चुनाव मैदान में आने से राजद को नुकसान होना तय है।
ऐतिहासिक और धार्मिक नवादा की धरती शुरू से समृद्ध रही है। झारखंड की सीमा से जुड़े इस संसदीय क्षेत्र का चुनाव परिणाम यहां के जातीय समीकरण तय करते रहे हैं।
माना जा रहा है कि भूमिहार के सामने कुशवाहा को उतार कर लालू प्रसाद ने एनडीए को टक्कर देने की कोशिश की थी, लेकिन इस चक्कर में उनके कुनबे के लोग यानी यादव ही उनके विरोध में उतर आए हैं।
बहरहाल, तय माना जा रहा है कि नवादा की लड़ाई अब दिलचस्प हो गयी है।
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