iGrain India - नई दिल्ली । हाल की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट से यह तथ्य सामने आया है कि देश में मौसम की चरम स्थिति एवं प्राकृतिक आपदाओं के प्रकोप से 50 प्रतिशत से अधिक लघु एवं सीमांत किसानों की कम से कम अच्छी फसल खेतों में ही बर्बाद हो जाती है।
इन प्राकृतिक आपदाओं में बेमौसमी वर्षा, अत्यधिक बारिश, लम्बे समय तक मौसम ठंडा या जर्म रहना सूखा, भीषण गर्मी एवं बाढ़ आदि शामिल है।
इस सर्वेक्षण में 6600 से अधिक सीमांत किसानों का सर्वेक्षण किया गया जिसका चयन अखिल भारतीय स्तर पर किसानों के एक विशाल पैनल में से किया गया था।
प्रथम चरण का सर्वेक्षण वर्ष 2023 में किया गया था और प्रतिभागियों का चयन उसके पास मौजूद कृषि योग्य जमीन के क्षेत्रफल के आधार पर हुआ था। देश के 21 प्रांतों से सैम्पल लिए गए थे।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 1 हेक्टेयर तक भूमि की जोत वाले किसानों के सीमांत किसान की श्रेणी का माना जाता है जिसमें या तो वह किसान भूमि मालिक के रूप में कार्य करता है या साझेदारी में अथवा किराए (पट्टे) पर फसल उगाता है।
भारतीय कृषि क्षेत्र में सीमांत किसानों का संवर्ग सबसे बड़ा है लेकिन उसके पास कुल कृषि योग्य जमीन का केवल 24 प्रतिशत भाग उपलब्ध है। इस संवर्ग में प्रति किसान की औसत कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल महज 0.38 हेक्टेयर आंका गया है।
पिछले मौसम की चरम स्थिति के दौरान फसलों को हुए नुकसान का गहराई से आंकलन किया गया। पिछले पांच वर्षों के कुल संचयी रुख से पता चलता है कि प्राकृतिक आपदाओं से ज्यादा किसानों को एक-तिहाई से लेकर 50 प्रतिशत तक फसलों का नुकसान झेलना पड़ा।
50 प्रतिशत से अधिक धान उत्पादक एवं करीब 40 प्रतिशत गेहूं उत्पादक को पिछले पांच वर्षों में नियमित रूप से फसलों की बर्बादी का संकट झेलना पड़ा। अन्य फसलों के लिए भी 45 से 65 प्रतिशत किसानों को भारी घाटा उठाना पड़ा।