iGrain India - पुणे । एक अग्रणी उद्योग संस्था का कहना है कि भारतीय चीनी उद्योग को फिलहाल अनेक समस्याओं एवं चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और इसे दूर करने के लिए सरकार के नीतिगत सहयोग-समर्थन की आवश्यकता है।
नेशनल फेडरेशन ऑफ को ऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के निदेशक का कहना है कि केन्द्र सरकार ने पिछले पांच साल से चीनी के एक्स फैक्टरी न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) में कोई बढ़ोत्तरी नहीं की है जबकि इस अवधि में गन्ना के उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में नियमित रूप से इजाफा होता रहा तथा अन्य खर्च भी बढ़ते रहे।
चीनी मिलों को नई अन्य चुनौतियों से भी जूझना पड़ रहा है जिसमें क्रियाशील पूंजी पर संकीर्ण मार्जिन तथा ऋण का बढ़ता बोझ भी शामिल है।
दरअसल मिलों के पास चीनी का विशाल स्टॉक मौजूद है जबकि इसकी बिक्री एक निश्चित मात्रा से अधिक नहीं की जा सकती है।
चीनी के व्यापारिक निर्यात पर प्रतिबंध लगा हुआ है इसलिए मिलर्स को केवल घरेलू बाजार में ही अपना उत्पाद बेचना पड़ रहा है।
इसके लिए सरकार प्रत्येक माह हरेक मिल के लिए चीनी का फ्री सेल (NS:SAIL) कोटा नियत करती है। चीनी का विशाल अधिशेष स्टॉक होने से मिलों की पूंजी फंस जाती है जिससे बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों से लिए गए ऋण तथा उस पर लगने वाले ब्याज का भुगतान सही समय पर करने में सफलता नहीं मिल पाती है।
फेडरेशन के अनुसार गन्ना के एफआरपी में होने वाली बढ़ोत्तरी के अनुपात में चीनी का एमएसपी बढ़ाए जाने की जरूरत है।
पिछले पांच वर्षों से सभी प्रांतीय फेडरेशन द्वारा इसकी मांग की जा रही है मगर सरकार इस पर सकारात्मक रूख नहीं अपना रही है। इस तरह की नीति से चीनी उद्योग की कठिनाई बढ़ रही है।
फेडरेशन के निदेशक के अनुसार स्वदेशी उद्योग सिर्फ चीनी के लागत मूल्य की मांग कर रहा है जो अब बढ़कर 4100 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है जबकि चीनी का एमएसपी महज 3100 रुपए प्रति क्विंटल है जिसे वर्ष 2019 में नियत किया गया था। गन्ना का एफआरपी बढ़ा है।
परिवहन खर्च में बढ़ोत्तरी हुई है और श्रमिकों की मजदूरी में भी इजाफा हुआ है। लेकिन चीनी का एमएसपी स्थिर बना हुआ है।
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