iGrain India - बैंकॉक । दक्षिण-पूर्व एशिया में अवस्थित थाईलैंड अभी तक भारत के बाद दुनिया का दूसरा सबसे प्रमुख चावल निर्यातक देश बना हुआ था लेकिन चालू वर्ष के दौरान वह वियतनाम से पिछड़कर तीसरे स्थान पर खिसक सकता है क्योंकि एक तो उसकी प्रतिस्पर्धी क्षमता कमजोर पड़ गई है और दूसरे, वहां चावल की ऐसी किसी नई किस्म का विकास भी नहीं हुआ है जो वैश्विक बाजार की बदलती मांग को पूरा करने में सक्षम हो सके।
थाईलैंड के चावल निर्यात क्षेत्र का प्रदर्शन कमजोर देखा जा रहा है। दरअसल पिछले साल थाईलैंड में अल नीनो मौसम चक्र के प्रकोप से बारिश कम होने के कारण चावल का उत्पादन प्रभावित हुआ था जिससे इसके निर्यात योग्य स्टॉक में कमी आने की संभावना है।
थाईलैंड में चावल का निर्यात ऑफर मूल्य भी भारत और वियतनाम से काफी ऊंचा चल रहा है। यही कारण है कि इंडोनेशिया की सरकारी एजेंसी- बुलॉग अक्सर थाईलैंड के बजाए वियतनाम से चावल के आयात को प्राथमिकता देती है। इसी तरह फिलीपींस में भी वियतनामी चावल के आयात को प्राथमिकता दी जा रही है।
अफ्रीका के गरीब देश थाईलैंड और वियतनाम के बजाए भारत से सस्ते सेला चावल के आयात पर जोर दे रहे हैं जिसका मतलब यह हुआ कि वहां भी थाईलैंड को चावल के निर्यात में ज्यादा सफलता नहीं मिलेगी।
लेकिन खाड़ी क्षेत्र के देशों, उत्तरी एवं दक्षिणी अमरीका महाद्वीप के कुछ देशों तथा मलेशिया एवं सिंगापुर सहित अन्य निकटवर्ती देशों में थाईलैंड को चावल का बेहतर निर्यात करने का अवसर मिल सकता है।
दरअसल गैर बासमती सफेद चावल का व्यापारिक निर्यात भारत से पिछले एक साल से बंद है जिसका फायदा थाईलैंड और वियतनाम को हासिल हो रहा है।
वहां निर्यातक इस अवसर का लाभ उठाते हुए अपने चावल का निर्यात ऑफर मूल्य बढ़ते रहते हैं। पहले भारत की वजह से उसे इसका मौका नहीं मिल रहा था
क्योंकि भारत का कच्चा (सफेद) चावल काफी सस्ते दाम पर उपलब्ध था और इसकी प्रतिस्पर्धा में टिकने के लिए थाईलैंड तथा वियतनाम को भी अपने चावल का निर्यात ऑफर मूल्य नीचे रखने के लिए विवश होना पड़ता था।