iGrain India - मुम्बई । एक अग्रणी व्यापार विश्लेषक का कहना है कि फरवरी के अंत से अब तक रूई के दाम में करीब 35 प्रतिशत की भारी गिरावट आ चुकी है और अब तलहटी में पहुंचने के बाद बाजार ऊपर उठने के कगार पर आ गया है।
राष्ट्रीय स्तर पर कपास के बिजाई क्षेत्र में काफी कमी आई है और उत्पादक घटने की प्रबल संभावना बन रही है। बाजार पर इसका भी आंशिक रूप से मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है।
विश्लेषक के मुताबिक रूई की कीमतों पर अब तक जबरदस्त दबाव बना हुआ है क्योंकि एक तो इसकी खरीद-बिक्री जरूरत से ज्यादा हो गई और दूसरे, खरीदारों द्वारा कम से कम दाम पर इसकी लिवाली का प्रयास किया गया।
कॉमोडिटी एक्सचेंज में फिलहाल रूई का वायदा महत्वपूर्ण प्रतिरोध स्तर के आसपास चल रहा है और उस स्तर से यदि भाव ऊपर उठने में सफल हो गया तो इसमें तेजी-मजबूती के नए दौर की शुरुआत आरंभ हो जाएगी।
इसके साथ ही पिछले कई महीनों से बाजार में जारी नरमी का सिलसिला थम जाएगा। पिछले अनेक सप्ताहों से रूई का दाम अत्यन्त निचले स्तर पर चल रहा है जबकि आगे इसे ऊपर उठकर सामान्य स्तर पर आना चाहिए। ऐसी परिपाटी रही है कि गिरने के बाद रूई का बाजार पुनः संभल जाता है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर कपास का उत्पादन क्षेत्र वर्तमान खरीफ सीजन में 12 अगस्त तक केवल 110.50 लाख हेक्टेयर पर पहुंच सका जो गत वर्ष की समान अवधि की बिजाई क्षेत्र 121.25 लाख हेक्टेयर से 10.75 लाख हेक्टेयर कम है।
इससे पूर्व की इसी अवधि में कपास का क्षेत्रफल वर्ष 2022 में 124.27 लाख हेक्टेयर तथा वर्ष 2021 में 116.50 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया था। इस बार पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के साथ-साथ गुजरात में भी कपास का रकबा काफी घट गया है जबकि वह इसका सबसे प्रमुख उत्पादक राज्य है।