भोपाल, 22 अगस्त (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित बीएमएचआरसी अस्पताल के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में विलय की चर्चाओं ने गैस पीड़ितों की चिंता बढ़ा दी है। गैस पीड़ितों के लंबे समय से संघर्ष कर रहे संगठनों ने विलय के प्रस्ताव की निंदा की है।मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दिसम्बर 1984 में हुए यूनियन कार्बाइड गैस हादसे में हजारों लोग मारे गए थे और अब भी हजारों लोग इस हादसे के दुष्परिणाम झेल रहे हैं। इन पीड़ितों को उनका हक दिलाने के लिए चार संगठन संघर्षरत हैं। इन संगठनों के नेताओं ने पीड़ितों के स्वास्थ्य के लिए बने बीएमएचआरसी अस्पताल के एम्स भोपाल के साथ प्रस्तावित विलय की निंदा की है।
संगठनों ने कहा है कि उन्होंने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री को पत्र लिखकर इस विलय के विचार को रद्द करने का आग्रह किया है। विलय से पीड़ितों के स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचेगा।
संगठनों ने बताया कि प्रस्तावित विलय भोपाल के पीड़ितों के स्वास्थ्य के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है।
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की अध्यक्ष रशीदा बी ने कहा, एम्स भोपाल के साथ प्रस्तावित विलय से भोपाल के पीड़ितों के लिए मौजूद स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को अपूरणीय क्षति होगी। यह प्रस्ताव 2018 में भी लाया गया था और शुक्र है कि सरकार द्वारा नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने अगस्त 2019 में इस विचार को खारिज कर दिया था। हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि यह प्रस्ताव, जो पीड़ितों के लिए विशेष ध्यान देने की सुविधाओं को छीन लेगा, पांच साल बाद फिर से क्यों उठाया जा रहा है।
भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष बालकृष्ण नामदेव ने कहा, जनवरी 2024 से एम्स ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भोपाल के कैंसर पीड़ितों को देखभाल प्रदान करना शुरू कर दिया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त निगरानी समिति ने एम्स में मरीजों की तीन से चार महीने की प्रतीक्षा अवधि पर चिंता व्यक्त की है।
भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा के नवाब खान ने कहा कि प्रस्तावित विलय भोपाल गैस पीड़ितों की चिकित्सा देखभाल से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्देशों का उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने नौ अगस्त, 2012 को केंद्र सरकार और अन्य एजेंसियों को भोपाल मेमोरियल अस्पताल को एक स्वायत्त शिक्षण संस्थान बनाने का निर्देश दिया ताकि यह गुणवत्तापूर्ण कर्मचारियों को आकर्षित कर सके और गैस पीड़ितों की बेहतर सेवा कर सके।
आंदोलनकारी संगठनों का आरोप है कि इस विचारहीन प्रस्ताव के बारे में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इसे आगे बढ़ाने की मांग करने वाले अधिकारियों ने गैस पीड़ितों से परामर्श करना आवश्यक नहीं समझा। भोपाल स्थित किसी भी पीड़ित संगठन से इस मामले पर उनकी राय नहीं ली गई।
--आईएएनएस
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