iGrain India - नई दिल्ली । घरेलू प्रभाग में दालों की मांग एवं खपत नियमित रूप से बढ़ती जा रही है लेकिन इसके अनुमान में दलहनों का उत्पादन नहीं बढ़ रहा है।
इसके फलस्वरूप देश में विदेशों से एक बार फिर दलहनों के आयात में भारी वृद्धि होने लगी है। वित्त वर्ष 2022-23 में करीब 25 लाख टन दलहन मंगाया गया था जबकि 2023-24 में आयात बढ़कर 46 लाख टन के करीब पहुंच गया जिस पर 3.75 अरब डॉलर की विशाल धनराशि खर्च हुई।
हालांकि सरकार ने वर्ष 2027-28 तक देश को दलहनों के आयात से मुक्त करने का लक्ष्य रखा है और केन्द्रीय कृषि मंत्री इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जोरदार प्रयास भी कर रहे हैं मगर मांग और आपूर्ति के बीच अंतर इतना विशाल हो गया है कि महज तीन साल में इसे पूरी तरह पाटना संभव नहीं लगता है।
सरकार भी दलहनों के आयात को प्रोत्साहित कर रही है और इसलिए उसने पांच प्रमुख दलहनों- अरहर (तुवर), चना, उड़द, मसूर एवं मटर के आयात पर लगे सभी शर्तों-प्रतिबंधों को समाप्त करके इसे सीमा शुल्क के दायरे से बाहर कर दिया है। ऐसी हालत में देश को दाल-दलहनों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की कल्पना करना भी बेकार है।
खरीफ कालीन दलहन फसलों की बिजाई में मिश्रित रुख देखा जा रहा है। एक तरफ तुवर एवं मूंग के उत्पादन क्षेत्र में अच्छी बढ़ोत्तरी हुई है तो दूसरी ओर उड़द एवं मोठ का बिजाई क्षेत्र गत वर्ष से पीछे चल रहा है।
दलहनों में कुल क्षेत्रफल में 6.50 लाख हेक्टेयर का इजाफा हुआ है मगर मध्य प्रदेश, गुजरात एवं राजस्थान जैसे महत्वपूर्ण उत्पादक राज्यों के कई जिलों में भयंकर बाढ़ की स्थिति रहने से फसलों को गंभीर खतरा भी बना हुआ है।
खरीफ दलहनों के उत्पादन में होने वाले उतार-चढ़ाव का पता तो नवम्बर-दिसम्बर में चलेगा मगर गत वर्ष के मुकाबले इसमें ज्यादा अंतर आने में संदेह है।