iGrain India - नई दिल्ली । हालांकि केन्द्र सरकार ने 490 डॉलर प्रति टन के न्यूनतम निर्यात मूल्य (मेप) के साथ गैर बासमती सफेद चावल के शिपमेंट की अनुमति पिछले महीने ही प्रदान कर दी थी
और सेला चावल पर भी निर्यात शुल्क को 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत नियत कर दिया है लेकिन इसके बावजूद प्रमुख बंदरगाहों पर कस्टम (सीमा शुल्क) अधिकारियों द्वारा खेपों को रोके जाने से चावल के निर्यात शिपमेंट में अनावश्यक देरी हो रही है और निर्यातकों को आर्थिक नुकसान हो रहा है।
व्यापारिक सूत्रों के अनुसार समस्या इसलिए उत्पन्न हुई है क्योंकि सफेद चावल का कोई निर्यात शुल्क लागू नहीं है जबकि सेला चावल पर 10 प्रतिशत का शुल्क लगता है।
कस्टम अधिकारी यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सफेद चावल के नाम पर सेला चावल का निर्यात न हो। इसलिए कंटेनर फ्राइट स्टेशन (सीएफएस) पर चावल की खेपों को रोक कर उसकी अच्छी तरह जांच-पड़ताल की जा रही है और इसमें समय लग रहा है।
जब तक सरकार ने चावल की निर्यात नीति को उदार नहीं बनाया था तब तक सब कुछ सामान्य चल रहा था क्योंकि इस समय सफेद चावल का शिपमेंट नहीं हो रहा था और सेला चावल पर 20 प्रतिशत का शुल्क लगा हुआ था इसलिए जांच-पड़ताल की जरूरत नहीं पड़ती थी।
सितम्बर के अंत तक कस्टम अधिकारी सेला चावल की खेप को केवल इसलिए रोकते थे कि कहीं उसकी आड़ में सफेद चावल का निर्यात हो रहा है क्योंकि उस पर पाबन्दी लगी हुई थी और अब यह पता लगाने के लिए खेपों को रोका जा रहा है कि सफेद चावल के नाम पर सेला चावल का निर्यात हो रहा है या नहीं। सितम्बर की तुलना में अक्टूबर के दौरान कस्टम विभाग की जांच की दिशा बदल गई।
कस्टम अधिकारी चावल की श्रेणी का परीक्षण करवा रहे हैं। सफेद चावल का वैश्विक बाजार भाव 491-495 डॉलर प्रति टन तथा सेला चावल का दाम 500 डॉलर प्रति टन से ऊपर चल रहा है जो फ्री ऑन बोर्ड पर आधारित है।
अधिकारियों को संदेह है कि सफेद चावल के नाम पर सेला चावल का शिपमेंट करके निर्यात शुल्क बचाने का प्रयास किया जा सकता है इसलिए परीक्षण करवाना जरुरी माना जा रहा है।
इधर निर्यातकों का कहना है कि खेपों को रोके जाने से उन्हें 70-80 डॉलर प्रति टन तक का अतिरिक्त वित्तीय भार उठाना पड़ रहा है।
कई खेपों को पिछले 10 दिन से रोककर रखा गया है। इससे खर्च बढ़ रहा है और आयातक देशों तक सही समय पर चावल की खेपों को पहुंचाना मुश्किल होता जा रहा है।