iGrain India - मुम्बई । केन्द्र सरकार द्वारा क्रूड एवं रिफाइंड श्रेणी के खाद्य तेलों पर बुनियादी आयात शुल्क में की गई 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी स्वदेशी तिलहन उत्पादकों को बेहतर मूल्य की वापसी सुनिश्चित करने में सहायक साबित होगी।
सीमा शुल्क में इजाफा होने से विदेशी खाद्य तेलों का आयात महंगा होगा और स्वदेशी प्रोसेसर्स-रिफाइनर्स को ऊंचे दाम पर खाद्य तेल की बिक्री का अवसर मिलेगा और वे किसानों को तिलहनों का ऊंचा मूल्य देने से नहीं हिचकेंगे।
भारत दुनिया में खाद्य तेलों का सबसे प्रमुख आयातक देश है। सरकार का इरादा खाद्य तेलों के आयात को नियंत्रित करने का है। इसके लिए एक तरफ विदेशी खाद्य तेलों के आयात को महंगा बनाने का प्रयास किया जा रहा है तो दूसरी ओर राष्ट्रीय तिलहन-तेल मिशन की लांचिंग करके स्वदेशी स्रोतों से तिलहनों का उत्पादन बढ़ाने की कोशिश भी की जा रही है। तिलहनों का उत्पादन बढ़ने पर ही खाद्य तेलों के बढ़ते आयात पर अंकुश लगाना संभव हो सकेगा।
घरेलू प्रभाग में खासकर सोयाबीन का भाव लम्बे समय से न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे चल रहा है जबकि इसके अन्य माल की जोरदार आवक शुरू हो गई है।
सरकार को आशंका थी कि नए माल के आने से सोयाबीन का भाव और भी नरम पड़ सकता है इसलिए खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाना आवश्यक समझा गया।
वैसे सरकार ने किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर भारी मात्रा में सोयाबीन खरीदने की घोषणा भी की है। सोयाबीन का एमएसपी गत वर्ष के 4600 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़ा कर इस बार 892 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है।
तिलहनों का घरेलू उत्पादन बढ़ने पर न केवल खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता में कमी आएगी बल्कि ऑयल मील का निर्यात बढ़ाना भी संभव हो सकेगा जिसे बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की आमदनी बढ़ेगी।
किसानों को भी फायदा होगा और क्रशिंग-प्रोसेसिंग मिलों को अपनी सकल संचित उत्पादन क्षमता के अधिक भाग का उपयोग करने का अवसर मिलेगा।