iGrain India - नई दिल्ली । तिलहनों का घरेलू बाजार भाव नीचे रहने के बावजूद खाद्य तेलों का दाम ऊंचा चल रहा है और ऐसा प्रतीत होता है कि खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में हुई 20 प्रतिशत की भारी बढ़ोत्तरी का फायदा भारतीय किसानों के बजाए निर्यातक देशों के किसानों को प्राप्त हो रहा है।
आयात शुल्क में इजाफा होने के बाद गत एक माह के दौरान पाम तेल, सोयाबीन तेल तथा सूरजमुखी तेल का भाव 10-15 प्रतिशत उछल गया है।
यह सही है कि अक्टूबर में त्यौहारी मांग काफी मजबूत रही लेकिन अब मांग एवं खपत कमजोर पड़ने लगी है। वैसे शादी-विवाह (लग्नसरा) एवं मांगलिक उत्सवों का सीजन अब आरंभ हो चुका है।
एक अग्रणी कम्पनी के एमडी का कहना है कि लग्नसरा सीजन के दौरान खाद्य तेलों की अच्छी खपत होती है। इस बार यह सीजन लम्बा चलने वाला है जो थोड़े-बहुत अंतराल के साथ नवम्बर 2024 से जून 2025 तक जारी रहेगा।
केवल नवम्बर-दिसम्बर 2024 के दौरान ही देश में लगभग 48 लाख शादियां होने वाली हैं जिसका मतलब यह हुआ कि खाद्य तेलों की मांग मजबूत बनी रहेगी।
भारत में खाद्य तेलों की घरेलू मांग एवं जरूरत के 60 प्रतिशत भाग को विदेशों से आयात के जरिए पूरा किया जाता है। केन्द्र सरकार द्वारा 13 सितम्बर 2024 को क्रूड एवं रिफाइंड श्रेणी के खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में 22 प्रतिशत का शुद्ध इजाफा किया गया जिसके फलस्वरूप भारतीय फर्मों द्वारा सितम्बर-अक्टूबर माह के दौरान पर्याप्त मात्रा में इसका आयात नहीं किया गया।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सी) के आंकड़ों से पता चलता है कि 2023-24 के सम्पूर्ण मार्केटिंग सीजन (नवम्बर-अक्टूबर) के दौरान भारत में खाद्य तेलों का आयात गिरकर 159.60 लाख टन रह गया जो 2022-23 सीजन के आयात से 3.09 प्रतिशत कम रहा।
एक अन्य उद्योग विश्लेषक के मुताबिक लग्नसरा के सीजन में खाद्य तेलों की मांग एवं कीमत तो आमतौर पर मजबूत रहेगी जिससे महंगाई बढ़ने का खतरा रहेगा मगर इसी ऊंची कीमत के कारण आम आदमी को खपत घटाने के लिए विवश होना पड़ सकता है।
त्यौहारी एवं लग्नसरा के सीजन में खाद्य तेलों की मांग एवं खपत बढ़ने की परिपाटी रही है मगर ऊंचा भाव इसमें कुछ बाधा डाल सकता है।
इसे ध्यान में रखकर अधिकांश कंपनियां चरणबद्ध रूप से खाद्य तेलों का दाम बढ़ा रही है। प्रथम चरण के दौरान इसमें 10-15 प्रतिशत का इजाफा हो चुका है जबकि आगामी महीनों के दौरान इसमें 7 से 10 प्रतिशत तक की और बढ़ोत्तरी की जा सकती है। खाद्य तेलों का आयात खर्च इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।