iGrain India - नई दिल्ली । हाल के एक अध्ययन से पता चलता है कि केन्द्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना तथा अन्य कल्याणकारी स्कीम के तहत अत्यन्त विशाल मात्रा में खाद्यान्न का कोटा आवंटित किया जाता है और राज्यों में पीडीएस के माध्यम से आम लोगों में इसका मुफ्त वितरण किया जाता है।
लेकिन कुल आवंटित खाद्यान्न का केवल 72 प्रतिशत भाग ही वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंचता है जबकि शेष 28 प्रतिशत अनाज कहीं और डायवर्ट हो जाता है देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त राशन योजना के तहत खाद्यान्न उपलब्ध करवाया जाता है लेकिन डायवर्जन के कारण लगभग 69000 करोड़ रुपए मूल्य का अनाज खुले बाजार में पहुंच जाता है जिससे केन्द्र सरकार को भारी नुकसान होता है।
अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2022 से जुलाई 2023 के दौरान प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत राज्यों द्वारा कुल करीब 710 लाख टन खाद्यान्न का उठाव किया गया जिसके 28 प्रतिशत भाग का लीकेज हो गया।
इसमें लगभग 170 लाख टन चावल तथा 30 लाख टन गेहूं का अंश शामिल था कहने का मतलब यह है कि इस 200 लाख टन खाद्यान्न को लाभार्थियों के बीच वितरित नहीं किया गया और किसी अन्य के हाथ बेच दिया गया। कुछ ऐसे भी मामले सामने आए हैं कि लाभार्थियों ने भी अपने खाद्यान्न के अतिरिक्त या अधिशेष भाग को बाजार में बेच दिया।
अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार इस 200 लाख टन लीकेज वाले खाद्यान्न का मूल्य 69,108 करोड़ रुपए बैठता है जो उस वर्ष (2022-23) के दौरान चावल तथा गेहूं के आर्थिक लागत मूल्य पर आधारित है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत खाद्यान्न के लीकेज को रोकना नीति निर्माताओं के लिए गहरी चिंता का विषय है जबकि इसके कवरेज का पुनर्मूल्यांकन करना भी बेहद जरुरी है।
सबसे नीचे स्तर की 15 प्रतिशत आबादी पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि 15 से 57 प्रतिशत आमदनी वाले समूह के लाभार्थियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधे दाम पर खाद्यान्न दिया जाना चाहिए।