iGrain India - इंदौर । अब यह लगभग स्पष्ट हो चुका है कि खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करने के सरकार के निर्णय से भले ही आम उपभोक्ताओं की कठिनाई बढ़ गई है मगर सोयाबीन के उत्पादकों को कोई फायदा नहीं हुआ जबकि सरकार ने कथित रूप से सोयाबीन का भाव बढ़ाने के लिए ही आयात शुल्क बढ़ाने का फैसला किया था।
सभी प्रमुख उत्पादक राज्यों में सोयाबीन का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से काफी नीचे चल रहा है जिससे किसानों में भारी असंतोष है।
केन्द्र सरकार ने सोयाबीन का न्यूनतम सर्मथन मूल्य 2023-24 सीजन के 4600 रुपए प्रति क्विंटल से 292 रुपए या 6.3 प्रतिशत बढ़ाकर 2024-25 सीजन के लिए 4892 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है और मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत राष्ट्रीय स्तर पर करीब 32.24 लाख टन की खरीद का लक्ष्य भी निर्धारित किया है।
इसके तहत मध्य प्रदेश में 13.68 लाख टन, महाराष्ट्र में 13.08 लाख टन, राजस्थान में 2.92 लाख टन, कर्नाटक में 1.03 लाख टन, गुजरात में 92 हजार टन तथा तेलंगाना में करीब 60 हजार टन की खरीद का लक्ष्य नियत हुआ है
मगर थोक मंडियों में भारी आवक होने तथा बाजार भाव काफी नीचे रहने के बावजूद 18 नवम्बर 2024 तक केवल 83 हजार टन सोयाबीन की सरकारी खरीद संभव हो सकी।
इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि सरकारी एजेंसियों द्वारा बहुत धीमी गति से सोयाबीन की खरीद की जा रही है।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार चालू खरीफ मार्केटिंग सीजन में 18 नवम्बर तक मध्य प्रदेश में 32,930 टन, तेलंगाना में 32,593 टन, महाराष्ट्र में 13,402 टन, राजस्थान में 2852 टन,
कर्नाटक में 636 टन तथा गुजरात में 197 टन सोयाबीन की सरकारी खरीद की गई। मध्य प्रदेश में 31 दिसम्बर, महाराष्ट्र में 12 जनवरी, राजस्थान में 15 जनवरी, कर्नाटक में 3 दिसम्बर तथा तेलंगाना में 23 दिसम्बर तक सोयाबीन की खरीद का समय निश्चित किया गया है।
यदि अधिक से अधिक किसानों को एमएसपी का लाभ सुनिश्चित करना है तो सरकार को पीएसएस के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सोयाबीन की खरीद की गति बढ़ानी होगी। किसान अभी बेहद चिंतित और परेशान है।