iGrain India - नई दिल्ली । हालांकि भारत तिलहन फसलों का एक महत्वपूर्ण उत्पादक देश है लेकिन यहां उपज दर वैश्विक मानक से काफी नीचे रहता है।
घरेलू मांग एवं जरूरत को पूरा करने के लिए भारत को अत्यन्त विशाल मात्रा में खाद्य तेलों का आयात करना पड़ता है जिस पर खर्च होने वाली वार्षिक धनराशि बढ़कर 16 अरब डॉलर के आसपास पहुंच चुकी है।
स्वदेशी तिलहन तेल उद्योग के नियमित विकास के लिए एक दीर्घकालीन रणनीति प्लान बनाने और उसे गंभीरता से लागू करना आवश्यक है।
भारतीय तिलहन-तेल क्षेत्र कृषि सेक्टर का एक प्रमुख अवयव बना हुआ है। खाद्य तेलों का घरेलू उत्पादन एक निश्चित सीमा में स्थिर हो गया है जबकि इसकी मांग एवं खपत लगातार बढ़ती जा रही है।
इसे देखते हुए एक रणनीति आयात प्रबंधन की जरूरत महसूस की जा रही है। भारत दुनिया में खाद्य तेलों का सबसे बड़ा आयातक देश है जहां इसका सालाना आयात 140 लाख टन से ज्यादा होने लगा है।
इसमें मुख्यत: तीन संवर्ग- पाम तेल, सोयाबीन तेल तथा सूरजमुखी तेल शामिल है। तिलहनों के उत्पादन में ब्राजील, अमरीका, अर्जेन्टीना तथा चीन के बाद भारत पांचवें नंबर पर है मगर शुरूआती तीन देश खाद्य तेल एवं तिलहन के शीर्ष निर्यातक है जबकि चीन में तिलहन (मुख्यतः सोयाबीन) एवं भारत में खाद्य तेल का सर्वाधिक आयात होता है।
भारत में खरीफ, रबी एवं जायद सीजन में विभिन्न तिलहन फसलों की खेती विशाल क्षेत्रफल में होती है मगर औसत उपज दर काफी नीचे होने के कारण अपेक्षित उत्पादन प्राप्त नहीं होता है। इसके लिए कुछ ठोस प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
उच्च उपज दर वाले तिलहन बीज का विकास होना और उसका पर्याप्त स्टॉक रखा जाना इस दिशा में काफी लाभदायक साबित हो सकता है।
यह देखना भी आवश्यक है कि अमरीका और लैटिन अमरीकी देशों में उपज दर को ऊंचे स्तर पर बरकरार रखने के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाएं जाते हैं और वे भारत के लिए अनुकूल हैं या नहीं।