नई दिल्ली, 18 नवंबर (आईएएनएस)। यूक्रेन संकट, बढ़ती महंगाई और कोरोनावायरस महामारी के बाद के प्रभावों के कारण पैदा हुई अस्थिर भू-राजनीतिक स्थितियों के कारण भारत के लिए 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल लग रहा है। बैंकिंग उद्योग के शीर्ष प्रतिनिधियों ने कहा है कि वर्तमान सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को देखते हुए ऐसा केवल 2030 तक ही संभव होगा।सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख बैंकों के प्रतिनिधियों ने वित्त पर उच्च स्तरीय संसदीय स्थायी समिति को यह संकेत दिया है।
घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले सूत्रों के अनुसार, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई (NS:SBI)), पंजाब नेशनल बैंक (NS:PNBK) (पीएनबी) और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया जैसे शीर्ष सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रतिनिधियों ने हाल ही में संसदीय पैनल के साथ वैश्विक व भारतीय अर्थव्यवस्था और 5 ट्रिलियन डॉलर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए रोडमैप और इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) संचालन सहित बैंकिंग क्षेत्र की प्रदर्शन समीक्षा के बारे में कहा जाता है कि यह संकेत दिया गया है कि वर्तमान जीडीपी दर लगभग 6.4 प्रतिशत है, इसे 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाना संभव नहीं होगा।
बैंकों के अधिकारियों ने संसदीय पैनल को बताया है कि 2030 से पहले 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने के लिए लगभग 10 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि की जरूरत है। मौजूदा वैश्विक आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह वृद्धि दर संभव नहीं लगती।
बैंकों के अधिकारियों के हवाले से सूत्रों ने आगे बताया कि इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड की शुरुआत के बाद से पिछले छह वर्षो में नॉन परफॉर्मिग एसेट्स (एनपीए) की रिकवरी भी केवल 30 प्रतिशत रही है, जो संतोषजनक नहीं है।
अधिकारियों ने समिति को सूचित किया है कि अगर बैंकिंग उद्योग में सुधार होता है, तभी 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा।
संसदीय पैनल के समक्ष बैंकिंग उद्योग द्वारा लगाया गया अनुमान सरकार के लिए एक झटके के रूप में आ सकता है, क्योंकि सरकार आमतौर पर समय सीमा से पहले लक्ष्यों को हासिल करने का लक्ष्य रखती है।
केंद्र ने 2030 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल सम्मिश्रण का लक्ष्य रखा था, जिसे अब वह 2025-26 तक हासिल करने की ओर अग्रसर है।
साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024-25 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था और वैश्विक बिजलीघर बनाने की कल्पना की थी।
हालांकि, बैंकिंग उद्योग द्वारा किए गए अनुमानों और प्रचलित वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए समय सीमा कुछ अधिक महत्वाकांक्षी प्रतीत होती है।
--आईएएनएस
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