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पंजाब में स्थिति अनुकूल होने के बावजूद कपास के बिजाई क्षेत्र में भारी गिरावट

प्रकाशित 14/06/2023, 04:35 pm
पंजाब में स्थिति अनुकूल होने के बावजूद कपास के बिजाई क्षेत्र में भारी गिरावट
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iGrain India - भटिंडा । पंजाब सरकार द्वारा इस बार सही समय पर नहरों में पानी छोड़े जाने तथा रियायती मूल्य पर बीज उपलब्ध करवाए जाने के बावजूद राज्य के किसानों ने कपास की खेती में कम दिलचस्पी दिखाई जिससे वहां इस महत्वपूर्ण रेशेदार औद्योगिक फसल के क्षेत्रफल में भारी गिरावट आ गई।

चालू वर्ष के दौरान पंजाब में कपास का उत्पादन क्षेत्र घटकर पिछले छह दशकों के न्यूनतम स्तर पर सिमट गया।

वस्तुत: पंजाब में पिछले सात-आठ साल से कपास के बिजाई क्षेत्र में गिरावट का रुख बना हुआ है जबकि उसके पड़ोसी राज्यों- हरियाणा एवं राजस्थान में कपास फसल के उत्पादन की दृष्टि से परिणाम बेहतर आ रहा है।

राज्य कृषि विभाग के अनुसार चालू वर्ष के दौरान पंजाब में कपास का कुल उत्पादन क्षेत्र लुढ़ककर 1.75 लाख हेक्टेयर पर सिमट गया जो न केवल 3 लाख हेक्टेयर के नियत लक्ष्य से 1.25 लाख हेक्टेयर कम था बल्कि पिछले साल के बिजाई क्षेत्र 2.48 लाख हेक्टेयर से भी काफी कम रहा। दरअसल विभिन्न कारणों से पंजाब में 2022-23 सीजन के दौरान कपास की औसत उपज दर में 45 प्रतिशत की भारी गिरावट आ गई जिससे किसानों को काफी नुकसान हुआ।

वैसे मंडियों में कपास का दाम इस बार 7000 रुपए प्रति क्विंटल या इससे ऊपर ही रहा जो 6600 रुपए प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य से ऊंचा था लेकिन किसानों को इसका भरपूर फायदा उठाने का अवसर नहीं मिल सका क्योंकि उसके पास लम्बा-चौड़ा स्टॉक ही मौजूद नहीं था।

पंजाब में कपास के बिजाई क्षेत्र में गिरावट की शुरूआती वर्ष 2015 से हुई जब फसल पर सफेद मक्खी का भीषण आक्रमण हुआ था। इससे वहां उपज दर एवं कुल पैदावार में जोरदार गिरावट आ गई।

उसके बाद से राज्य में केवल 2019 को छोड़कर प्रत्येक वर्ष कपास का बिजाई क्षेत्र 3 लाख हेक्टेयर से नीचे ही रहा। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पंजाब में कपास का उत्पादन क्षेत्र वर्ष 2016 में 2.95 लाख हेक्टेयर, 2017 में 2.91 लाख हेक्टेयर, 2018 में 2.68 लाख हेक्टेयर, 2019 में 3.35 लाख हेक्टेयर, 2020 में 2.50 लाख हेक्टेयर, 2021 में 2.52 लाख हेक्टेयर, 2022 में 2.48 लाख हेक्टेयर तथा 2023 में 1.75 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया।

पहली बार क्षेत्रफल घटकर 2 लाख हेक्टेयर से नीचे आया है। विशेषज्ञों का कहना है कि कपास की खेती से किसानों का भरोसा उठता जा रहा है।

जब तक उसे यह विश्वास नहीं हो जाएगा कि सफेद मक्खी, पिंक बॉलवर्म तथा लीफ कर्ल वायरस से कपास की फसल पूरी तरह सुरक्षित रहेगी तब तक वे इस महत्वपूर्ण औद्योगिक फसल का बिजाई क्षेत्र बढ़ाने से हिचकते रहेंगे।                                                                                                                                                                   

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