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मानसून की धीमी प्रगति से धान, दलहन एवं तिलहन फसलों की खेती पिछड़ी

प्रकाशित 19/06/2023, 04:40 pm
मानसून की धीमी प्रगति से धान, दलहन एवं तिलहन फसलों की खेती पिछड़ी
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iGrain India - नई दिल्ली । दक्षिण-पश्चिम मानसून की सुस्त चाल से राष्ट्रीय स्तर पर खरीफ कालीन धान, दलहन एवं तिलहन फसलों का रकबा गत वर्ष से पीछे चल रहा है।

इस बार केरल में मानसून लेट से पहुंचा और इसके आगे बढ़ने की गति भी धीमी रही जिससे राष्ट्रीय स्तर पर बारिश में भारी कमी आ गई। बिपरजॉय महातूफान के कारण गुजरात एवं राजस्थान के कुछ भागों में भारी वर्षा होने से स्थिति में कुछ सुधार आया है अन्यथा हालत और खराब हो सकती थी।

ऐसा प्रतीत होता है कि अल नीनो मौसम चक्र आगामी सप्ताहों में मानसून को प्रभावित करेगा जिससे वर्षा के वितरण में असंतुलन आ सकता है। 

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार देश के लगभग सभी प्रमुख कृषि उत्पादक क्षेत्रों खरीफ फसलों की बिजाई 10-12 दिन पीछे चल रही है।

यदि इसमें और विलम्ब हुआ तो औसत उपज दर पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। मौसम विभाग के अनुसार चालू वर्ष के दौरान सामान्य औसत की तुलना में मानसून की बारिश अब तक 37 प्रतिशत कम हुई है।

दलहन फसलों की बिजाई मानसून के आने के बाद चार-पांच दिन में आरंभ हो जाती है। अखिल भारतीय दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष का कहना है कि खेतों में 2.00-2.50 इंच पानी की जरूरत रहती है लेकिन इस बार खेतों की मिटटी में नमी का अंश इतना कम है कि किसानों को बिजाई में भारी कठिनाई हो रही है। 

एक प्राइवेट मौसम एजेंसी ने जुलाई के प्रथम सप्ताह तक प्रमुख कृषि उत्पादक इलाकों में बारिश की हालत निराशाजनक रहने का अनुमान लगाया है जबकि फसलों की बिजाई के लिए इस समयावधि को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। खेत सूखे हुए हैं और उसमें दरारें भी पड़ने लगी हैं। 

एक अग्रणी एग्री कॉमोडिटी रिसर्च फर्म- आई ग्रेन इंडिया के डायरेक्टर राहुल चौहान का कहना है कि मानसूनी वर्षा की कमी से जिन फसलों की बिजाई सबसे ज्यादा प्रभावित होगी उसमें सोयाबीन मुख्य रूप से शामिल है क्योंकि इसे अपेक्षाकृत अधिक नमी की जरूरत पड़ती है।

यदि यही स्थिति रही तो चालू वर्ष में सोयाबीन का बिजाई क्षेत्र घट सकता है।

दिलचस्प तथ्य यह है कि मानसून सबसे पहले केरल आया मगर वहां भी बारिश कम हुई है। इसके बाद वह कर्नाटक पहुंचा मगर वहां और भी कम वर्षा हुई।

सामान्य औसत की तुलना में देश के मध्यवर्ती क्षेत्र में 55 प्रतिशत, दक्षिण प्रायद्वीप में 61 प्रतिशत तथा पूर्वोत्तर राज्यों में 23 प्रतिशत कम बारिश हुई लेकिन बिपरजॉय महातूफान के कारण देश के पश्चिमोत्तर भाग में 13 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई।                                

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