iGrain India - बंगलोर । एक तरफ कर्नाटक सरकार अपने वादे को पूरा करने के लिए 'अन्न भाग्य गारंटी योजना' के तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों (बीपीएल) के प्रत्येक सदस्य को 10 किलो चावल प्रदान करने हेतु छत्तीसगढ़, तेलंगाना एवं पंजाब जैसे राज्यों से इसकी आपूर्ति का प्रयास कर रही है तो दूसरी ओर वह स्थानीय किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर रागी और ज्वार जैसे मिलेट्स की खरीद की संभावना का पता भी लगा रही है।
किसान नेताओं एवं विशेषज्ञों ने इसका सुझाव दिया है। उसका कहना है कि इस तरह का कदम न केवल लोगों के पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करेगा बल्कि किसानों को मिलेट्स का अधिक से अधिक उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित भी करेगा।
भारतीय खाद्य निगम ने खुले बाजार बिक्री योजना के तहत राज्यों को गेहूं तथा चावल की बिक्री स्थगित रखने का निर्णय लिया है जिससे कर्नाटक सरकार को अधिशेष उत्पादन वाले राज्यों से इसको मंगाने का प्लान बनाना पड़ा है।
कर्नाटक राज्य रैयत संघ के अध्यक्ष का कहना है कि अन्य राज्यों से चावल खरीदार उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत आपूर्ति करने के बजाए राज्य सरकार को स्थानीय किसानों से रागी एवं ज्वार खरीद कर लाभार्थियों के बीच वितरित करना चाहिए।
कर्नाटक के दक्षिणी भाग में रागी की खपत बड़े पैमाने पर होती है। यदि पीडीएस में इसका नियमित वितरण किया जाए तो एक साथ अनेक फायदे हो सकते हैं। इसके अलावा राज्य सरकार पीडीएस के तहत सोना मसूरी चावल के वितरण का विकल्प भी उपयोग में ला सकती है।
एक अन्य किसान नेता का कहना है कि रागी और ज्वार की सीधी खरीद होने से सरकार किसानों की भलाई कर सकेगी।
एक विशेषज्ञ के अनुसार राज्य सरकार को चावल के साथ 5 किलो रागी या ज्वार के वितरण के विकल्प पर विचार करना चाहिए जिससे खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायता मिलेगी और किसानों को खरीफ सीजन में मोटे अनाजों का बिजाई क्षेत्र बढ़ाने के लिए अच्छा संकेत भी मिल जाएगा। मालूम हो कि कर्नाटक देश में रागी के सबसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में शामिल है।