iGrain India - नई दिल्ली । भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत प्रथम चरण की ई-नीलामी में 5 लाख टन गेहूं की बिक्री का ऑफर देने का निर्णय लिया है जिसके लिए 23 जून को बोली (बिड्स) आमंत्रित की जा सकती है।
लेकिन प्रत्येक चक्र की नीलामी में हरेक फर्म (खरीदार) के लिए गेहूं की अधिकतम खरीद सीमा 100 टन निर्धारित है इसलिए कुछ उद्योग विश्लेषकों का मानना है कि वास्तविक उपयोगकर्ता इस नीलामी में भाग नहीं ले सकते हैं।
केन्द्र सरकार गेहूं के न्यूनतम आरक्षित मूल्य में बढ़ोत्तरी करने पर विचार कर रही है। फिलहाल यह आरक्षित मूल्य एफएक्यू गेहूं के लिए 2150 रुपए प्रति क्विंटल तथा यूआरएस के लिए 2125 रुपए प्रति क्विंटल नियत है जो खुले बाजार में प्रचलित गेहूं के दाम से काफी नीचे है।
उद्योग विश्लेषकों के अनुसार कुछ लोग सस्ते सरकारी गेहूं की खरीद करके उसे खुले बाजार में ऊंचे दाम पर बेचने का प्रयास कर सकते हैं। इसके परिणाम स्वरुप प्रोसेसर्स और खासकर रोलर फ्लोर मिलर्स को उन व्यापारियों से सरकारी गेहूं खरीदने के लिए भी ऊंचा मूल्य चुकाना पड़ सकता है।
गेहूं के आरक्षित मूल्य का मुद्दा प्रोसेसर्स एवं सरकार के बीच विवाद का कारण बना हुआ है। कुछ विश्लेषकों ने सरकार को गेहूं का आरक्षित मूल्य 2350 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित करने का सुझाव दिया है और परिवहन खर्च को इससे अलग रखने के लिए कहा है।
पिछले दिन आयोजित एक बैठक में प्रोसेसर्स ने खाद्य मंत्रालय को सूचित किया था कि उन्होंने सरकार की अपील पर फसल कटाई के सीजन में मंडियों में गेहूं खरीदा था।
अब यदि सरकार उस मूल्य से काफी नीचे दाम पर गेहूं बेचेगी तो मिलर्स के लिए कठिनाई बढ़ जाएगी क्योंकि वे नीचे भाव पर अपना उत्पाद नहीं बेच सकते हैं।
मामला काफी पेचीदा हो गया है। सरकार घरेलू मंडियों में गेहूं की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतों को नियंत्रित करने का प्रयास कर रही है लेकिन इसमें काफी अड़चने हैं।
कुछ समीक्षकों ने तो सरकार को गेहूं पर लगे 40 प्रतिशत के आयात शुल्क को भी स्थगित रखने का सुझाव दिया ताकि विदेशों से इसे मंगाने में सहायता मिल सके।