iGrain India - नई दिल्ली । ऑस्ट्रेलिया के व्यापार विश्लेषकों का कहना है कि भारत में जिस तरह की परिस्थितियां बन रही हैं उसे देखते हुए लगता है कि देर-सवेर उसे विदेशों से गेहूं का आयात करने की जरूरत पड़ सकती है।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के सीएमडी ने भी इसका संकेत देते हुए कहा है कि घरेलू बाजार में गेहूं की आपूर्ति एवं उपलब्धता बढ़ाने तथा कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार विभिन्न विकल्पों का सहारा ले सकती है जिसमें विदेशों से इसके आयात का विकल्प भी शामिल है।
फिलहाल हालात सामान्य हैं और खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत 28 जून को गेहूं की पहली ई-नीलामी शुरू करने के लिए सभी आवश्यक तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। गेहूं पर भंडारण सीमा पहले ही लागू हो चुकी है।
समीक्षकों के अनुसार गेहूं का घरेलू बाजार भाव हाल के सप्ताहों में राष्ट्रीय स्तर पर तेजी से बढ़ा है क्योंकि इसका वास्तविक उत्पादन सरकारी अनुमान से काफी कम हुआ है। मंडियों में इसकी सीमित आवक हो रही है जबकि मांग मजबूत बनी हुई है।
ऐसा प्रतीत होता है कि उत्पादकों एवं स्टॉकिस्टों के पास भी गेहूं का लम्बा-चौड़ा स्टॉक मौजूद नहीं है। इसकी सरकारी खरीद 262 लाख टन पर अटक गई जो नियत लक्ष्य 341.50 लाख टन से काफी कम है।
निस्संदेह केन्द्र सरकार गेहूं की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने का हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन हालात को नियंत्रण में लाने के वास्ते उसे कठिन संघर्ष करना पड़ रहा है।
रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरशन के अनुसार चालू वर्ष के दौरान गेहूं का वास्तविक घरेलू उत्पादन 1010 से 1030 लाख टन के बीच होने की उम्मीद है जो सरकारी अनुमान 1127 लाख टन से बहुत कम है। गेहूं की औसत वार्षिक घरेलू खपत 1080 लाख टन आंकी गई है।
इसका मतलब यह है कि आगामी महीनों में इस महत्वपूर्ण खाद्यान्न की मांग एवं आपूर्ति के बीच भारी अंतर या असंतुलन बन सकता है।
चूंकि सरकार के पास इसका विशालकाय स्टॉक मौजूद नहीं हैं इसलिए वह बाजार में लम्बे समय तक प्रभावी ढंग से हस्तक्षेप करने में शायद सफल नहीं हो पाएगी लेकिन फिर भी अंतिम समय तक बाजार पर दबाव बनाने का प्रयास अवश्य करेगी।
गेहूं पर फिलहाल 40 प्रतिशत का भारी-भरकम सीमा शुल्क लगा हुआ है इसलिए विदेशों से इसका आयात लगभग बंद है। लेकिन अगर सरकार के तमाम उपायों एवं प्रयासों के बावजूद कीमतों में अपेक्षित गिरावट नहीं आई तो इसका आयात करना अपरिहार्य हो सकता है।