iGrain India - कैनबरा । अमरीकी कृषि विभाग (उस्डा) की विदेश कृषि सेवा (फास) ने अपनी नई मासिक रिपोर्ट में 2023-24 के मार्केटिंग सीजन में ऑस्ट्रेलिया में गेहूं का कुल उत्पादन 290 लाख टन होने का अनुमान लगाया है जो दसवर्षीय औसत उत्पादन 264 लाख टन से ज्यादा मगर 2022-23 सीजन के रिकॉर्ड उत्पादन 397 लाख टन से 107 लाख टन कम है।
उस्डा पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में गेहूं का बिजाई क्षेत्र पिछले साल के 130.45 लाख हेक्टेयर से घटकर इस बार 128 लाख हेक्टेयर रह जाने की संभावना है जबकि गेहूं की औसत उपज दर भी 3.04 टन प्रति हेक्टेयर से गिरकर 2.27 टन प्रति हेक्टेयर पर सिमट जाने का अनुमान है। इससे कुल उत्पादन में भारी गिरावट आ जाएगी।
रिपोर्ट के मुताबिक 2023-24 के मार्केटिंग सीजन के दौरान ऑस्ट्रेलिया में 38.39 लाख टन के पिछले बकाया स्टॉक, 290 लाख टन के उत्पादन तथा 2.00 लाख टन के संभावित आयात के साथ गेहूं की कुल उपलब्धता 330.39 लाख टन पर पहुंचेगी। इसमें से 210 लाख टन गेहूं का विदेशों में निर्यात होगा और 85 लाख टन का घरेलू उपयोग किया जाएगा। 2023-24 के मार्केटिंग सीजन की समाप्ति पर ऑस्ट्रेलिया में 35.37 लाख टन गेहूं का स्टॉक बच सकता है।
उस्डा पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक 2022-23 के वर्तमान मार्केटिंग सीजन के दौरान ऑस्ट्रेलिया में 34.54 लाख टन के पिछले बकाया स्टॉक, 396.85 लाख टन के उत्पादन तथा 2 लाख टन के संभावित आयात के साथ गेहूं की कुल उपलब्धता बढ़कर 433.39 लाख टन के नए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने का अनुमान है।
इसमें से करीब 310 लाख टन गेहूं का निर्यात और 85 लाख टन का घरेलू उपयोग होने की उम्मीद है जिससे मार्केटिंग सीजन के अंत में वहां 38.39 लाख टन गेहूं का बकाया अधिशेष स्टॉक बच सकता है।
ऑस्ट्रेलिया से गेहूं का सर्वाधिक निर्यात दक्षिण-पूर्व एवं सुदूर-पूर्व एशिया में होता है। वहां इंडोनेशिया, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, थाईलैंड, वियतनाम, फिलीपिंस तथा मलेशिया सहित अनेक देश ऑस्ट्रेलिया से विशाल मात्रा में गेहूं का आयात करते हैं।
उस्डा पोस्ट का मानना है कि यद्यपि गेहूं के बिजाई सीजन में मौसम की हालत अनुकूल रहने से ऑस्ट्रेलिया में कुल उत्पादन क्षेत्र में ज्यादा गिरावट नही आएगी लेकिन फसल की प्रगति के दौरान अल नीनो मौसम चक्र का घातक प्रभाव रहने की आशंका है जिससे कई प्रमुख उत्पादक इलाकों में बारिश कम होने से फसल के सूखने की संभावना बढ़ जाएगी और इसकी औसत उत्पादकता दर में भारी गिरावट आ जाएगी।
कुछ इलाकों में फसल की हालत इतनी खराब हो सकती कि वहां इसकी कटाई-तैयारी संभव नही हो पाएगी।