iGrain India - रायचूर । पिछले एक माह के दौरान रूई के घरेलू बाजार मूल्य में करीब 7.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई क्योंकि कॉटन यार्न की सीमित कारोबारी गतिविधियों के कारण टेक्सटाइल मिलों में इसकी मांग कमजोर पड़ गई है।
लेकिन उद्योग समीक्षकों का कहना है कि एक बार जब रूई का भाव स्थिर हो जाएगा तो उद्यमी आश्वस्त होकर इसकी खरीद में दिलचस्पी दिखाना शुरू कर सकते हैं।
वर्तमान समय में स्थिति अच्छी नही है। घटती कीमतों को देखते हुए मिलर्स इसकी खरीद के प्रति सावधान हैं। रूई का कारोबार सुस्त पड़ गया है और कॉटन यार्न में भी ज्यादा मांग नही निकल रही है। मिलों को उत्पादन में कटौती करनी पड़ रही है। यार्न का दाम भी नरम चल रहा है।
कच्ची कपास के प्रोसेसिंग करके रूई (लिंट) बनाने वाली जिनिंग इकाइयों के पास करीब एक माह के ऑर्डर बचे हुए हैं। उसके बाद का ऑर्डर प्राप्त करने में उसे भारी कठिनाई हो रही है। रूई और यार्न में सीमित मांग है।
कॉटन यार्न के निर्यात प्रदर्शन कमजोर चल रहा है। साउथ इंडिया मिल्स एसोसिएशन (सीमा) के चेयरमैन का कहना है कि वैश्विक मांग कमजोर रहने से कॉटन यार्न के निर्यात की गति धीमी पड़ गई है और यदि निर्यात बाजार के लिए लक्षित माल को वापस घरेलू बाजार में उतारा गया तो वहां इसकी खपत नही हो पाएगी जबकि कीमतों में और भी भारी गिरावट आ सकती है।
हालांकि एसी खबरें आ रही हैं कि पिछले साल की तुलना में इस बार चीन सहित अन्य सभी प्रमुख बाजारों में कॉटन यार्न का स्टॉक कम बचा हुआ है इसलिए देर-सवेर वहां इसकी मांग अवश्य निकलेगी लेकिन तब तक घरेलू बाजार में कॉटन यार्न एवं कपास की मांग एवं कीमत में ज्यादा इजाफा होना मुश्किल लगता है।
एक माह पूर्व रूई का औसत घरेलू बाजार भाव 60,000 रुपए प्रति कैंडी (356 किलो) चल रहा था जो वर्तमान समय में घटकर 55,000/56,000 रुपए प्रति कैंडी पर आ गया है।
उधर गुजरात की राजकोट थोक मंडी में कपास का मॉडल मूल्य (जिस पर सर्वाधिक कारोबार होता है) भी गिरकर 7100 रुपए प्रति क्विंटल रह गया है जो चालू माह के आरंभ में प्रचलित मूल्य से 200 रुपए प्रति क्विंटल नीचे है।