iGrain India - विनीपेग । कनाडा में बसंतकालीन फसलों की बिजाई समाप्त हो चुकी है और मौसम की अनुकूल स्थिति के सहारे फसलों की अच्छी प्रगति हो रही है।
पिछले साल के मुकाबले चालू वर्ष के दौरान वहां गेहूं, कैनोला, जौ, मक्का एवं सोयाबीन के उत्पादन क्षेत्र में इजाफा हुआ है जबकि जई, मसूर एवं मटर के क्षेत्रफल में कमी आई है। इन फसलों की कटाई-तैयारी अगस्त-सितम्बर में शुरू हो जाएगी।
पश्चिमी कनाडा में मौसम अनुकूल रहने से सही समय पर फसलों की बिजाई पूरी हो गई। वहां अल्बर्टा प्रान्त में मई के अंत तक बिजाई की प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुकी थी। शुष्क एवं गर्म मौसम के कारण किसानों ने औसत समयावधि से पहले ही बिजाई पूरी कर ली।
सबसे प्रमुख कृषि उत्पादक राज्य- सस्कैचवान तथा मनिटोबा प्रान्त के कुछ इलाकों में नमी का अंश ज्यादा होने से बिजाई की प्रक्रिया कुछ देर तक चलती रही और बाद में वहां भी पूरी हो गई।
पूर्वी कनाडा में भी खेती के लिए मौसम अनुकूल रहा जिससे ओंटारियो एवं क्यूबेक प्रान्त में किसानों को मध्य मई तक अधिकांश क्षेत्र में बिजाई पूरी करने का अवसर मिल गया। बिजाई के समय तापमान लगभग सामान्य रहा और भारी वर्षा भी नही हुई।
पूर्वी ओंटारियो एवं पश्चिमी क्यूबेक के साथ-साथ अटलांटिक कनाडा क्षेत्र में सामान्य से कम बारिश होने के बावजूद किसानों ने फसलों की बिजाई जारी रखी।
स्टैट्स कैन की रिपोर्ट के अनुसार गेहूं का उत्पादन क्षेत्र बढ़कर पिछले दो दशक के शीर्ष स्तर पर पहुंच गया। इसका क्षेत्रफल पिछले साल से 6.7 प्रतिशत बढ़कर 269 लाख एकड़ पर पहुंचा। इसके तहत खासकर वसंतकालीन गेहूं का रकबा 8 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 195 लाख एकड़ पर पहुंचा।
इसमें अकेले सस्कैचवान प्रान्त में गेहूं का रकबा 6.9 प्रतिशत बढ़कर 142 लाख एकड़ पर पहुंच गया जबकि अल्बर्टा प्रान्त में भी रकबा 4.4 प्रतिशत सुधरकर 79 लाख एकड़ हो गया। मनिटोबा प्रान्त में 33 लाख एकड़ में गेहूं की खेती हुई है।
लेकिन मसूर एवं मटर का क्षेत्रफल काफी घट गया। मसूर का रकबा गत वर्ष से 15 प्रतिशत घटकर 37 लाख एकड़ रह गया जो वर्ष 2014 के बाद का सबसे नीचला स्तर है। इसी तरह मटर का उत्पादन क्षेत्र 9.7 प्रतिशत गिरकर 30 लाख एकड़ पर सिमट गया।
सस्कैचवान प्रान्त में मटर का रकबा 11.7 प्रतिशत घटकर 16 लाख एकड़ और अल्बर्टा राज्य में 4.7 प्रतिशत गिरकर 13 लाख एकड़ रह गया।
हालांकि मौसम की हालत अभी तक अनुकूल रहने से दलहन फसलों की औसत उपज दर बेहतर रहने की उम्मीद जताई जा रही है मगर जुलाई अगस्त का मौसम इसमें निर्णायक भूमिका निभा सकता है जब फसल पकने के चरण में पहुंच जाएगी।