iGrain India - नई दिल्ली । एक अग्रणी अर्थ शास्त्री का कहना है कि यदि इस वर्ष अल नीनो का आगमन जल्दी होता है तो खरीफ के साथ-साथ आगामी रबी सीजन में भी फसलों का उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
रबी सीजन में गेहूं, सरसों, चना, मसूर, मटर एवं जौ सहित अनेक अन्य फसलों का उत्पादन होता है जिसमें जीरा और धनिया जैसी मसाला फसल भी शामिल है।
जहां तक खरीफ सीजन की बात है तो इसमें धान अरहर (तुवर), सोयाबीन, कपास एवं गन्ना तथा बाजरा का ज्यादा उत्पादन होता है। उड़द, मूंग, मक्का, ज्वार एवं मूंगफली आदि की खेती खरीफ और रबी- दोनों सीजन में होती है।
अल नीनो मौसम चक्र के आगमन का अभी तक कोई स्पष्ट लक्षण या प्रमाण सामने नहीं आया है लेकिन इसकी आशंका बनी हुई है। समझा जाता है कि करीब छह महीने तक इसका जोरदार प्रभाव रहता है।
इसका मतलब यह हुआ कि अगर चालू माह (जुलाई) में इसका आगमन हुआ तो दिसम्बर-जनवरी तक इसका असर रह सकता है जबकि तब तक 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में रबी फसलों की बिजाई हो जाती है।
अक्टूबर से जनवरी तक का समय रबी फसलों की बिजाई एवं प्रगति के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है और इस अवधि में मौसम का अनुकूल होना बहुत जरुरी है अन्यथा फसलों को नुकसान हो सकता है।
रबी सीजन में खाद्यान्न (अनाज + दलहन) का उत्पादन बढ़कर खरीफ फसलों के उत्पादन के आसपास पहुंच गया है और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के साथ-साथ कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र की अर्थ व्यवस्था के विकास में भी इसका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। लाखों किसानों की आजीविका का यह प्रमाण स्रोत है।
खरीफ या मानसून सीजन की फसल का हाल बहुत उत्साहवर्धक नहीं है। पिछले साल धान एवं दलहन फसलों का रकबा घट गया था क्योंकि शुरूआती दौर में मानसून कमजोर रहा था। बाद में अरहर की फसल को प्राकृतिक आपदाओं से क्षति भी हुई थी।
अर्थ शास्त्री का कहना है कि जब तक अल नीनो का तीखा प्रभाव नहीं पड़ेगा तब तक दक्षिण-पश्चिम मानसून की हालत कमोबेश सामान्य रह सकती है और देश के विभिन्न भागों में अच्छी वर्षा होने की उम्मीद भी बरकरार रहेगी।
इससे खरीफ फसलों की बिजाई की गति सामान्य रह सकती है। अल नीनो के आगमन की प्रबल संभावना है जिससे ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा लैटिन अमरीका के अनेक देशों को गंभीर खतरा हो सकता है।
इसमें भारत, इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम एवं ब्राजील आदि शामिल है। भारत में अल नीनो के आगमन पर वर्षा कम होने की परम्परा रही है।